अचारी दही भिंडी

अचारी दही भिंडी 

सामग्री :

भिंडी - 4 कप (लंबाई में 4 टुकड़ों में कटी हुई) 
सौंफ - 2 बड़े चम्मच 
सरसों - 1 बड़ा चम्मच 
कलौंजी - 1/2 बड़ा चम्मच 
मेंथीदाना - 1/4 बड़ा चम्मच 
हिंग - थोड़ी सी 
अदरक - 1 टुकड़ा बारीक कटा हुआ 
टमाटर - 3/4 कप बारीक कटा 
नमक - स्वादानुसार 

दही के लिए : 

दही 1/2 कप और मिर्च पाउडर एक छोटा चम्मच, हल्दी 1/4 छोटा चम्मच, जीरा और धनिया पाउडर - 2 छोटी चम्मच।


बनाने की विधि :

एक नॉन स्टिक पैन में 4 बड़े चम्मच तेल गर्म कर ले। इसमें भिंडी डालकर 56 मिनट के लिए पका लें। पकने के बाद गहरे कटोरे में रख दे। उसी पैन में एक बड़ा चम्मच तेल डालकर उसमें साफ सरसों, कलौंजी, मेथी व हींग डाल कर, कुछ मिनट के लिए अच्छी तरह तले। अदरक मिलाकर और 30 सेकंड के लिए हलका पका लें। टमाटर मिलाकर मध्यम आंच पर 2 से 3 मिनट के लिए पकाते रहें। इस बीच दही में उसकी सारी सामग्री मिलाकर हल्का फेट ले। पैन की आंच धीमी करके दही मिला दें। अच्छी तरह मिलाते हुए धीमी आंच पर चलाते हुए पका लें। टमाटर और दही में मिक्स होने में दो-तीन मिनट लगेगा। आंच धीमी ही रखें अन्यथा दही फटने लगेगा। इसमें ताली भिंडियां डालकर इनमें नमक मिलाएं और 1-2 मिनट के लिए पका लें। आपका अचारी दही भिन्डी तैयार है अब इसे गरमा-गरम सर्व करें।

चना कोफ्ता करी


चना कोफ्ता करी

कढ़ी के लिए सामग्री

दही - 2 कप
बेसन - 1 बड़ा चम्मच 
तेल - 1 बड़ा चम्मच 
जीरा - आधा बड़ा चम्मच 
दालचीनी - 1 छोटा टुकड़ा 
हींग - 1/4 छोटा चम्मच 
करी पत्ते - 46 पत्ते 
हरी मिर्च पेस्ट - 1/2 बड़ा चम्मच 
नमक - स्वादानुसार 

कोफ्ते बनाने के लिए : 

काबुली चने - 3/4 कप भिगोए हुए, हरा धनिया - 1/2 कप कटा हुआ, पालक - 1/4 कप कटी हुई, मेथी के पत्ते - 1/2 कप कटे हुए, हरी मिर्च - 2 बड़ी बारीक कटिंग, नमक - स्वादानुसार



बनाने की विधि :

बेसन में दही डालकर दोनों को अच्छी तरह फेंटें। एक कड़ाही में तेल गरम करके उसमें जीरा, हींग, दालचीनी, करी के पत्ते और हरी मिर्च पेस्ट कर डालकर कुछ देर के लिए तलें। इसमें दही डालकर, पानी डालें और सामान्य कड़ी की तरह पकने दें। 


चने कोफ्ते बनाने के लिए : 

सारी सामग्री को मिलाकर, बिना पानी मिलाए मिक्सर में पीस लें। इस मिश्रण को एक बड़े कटोरे में डाल कर अच्छी तरह मिला ले। इसको 20 सामान भागों में बांट कर हर भाग का छोटा गोला बनाएं। एक चलनी में कोफ्ते को रखें और 7 - 8 मिनट के लिए कुकर में स्टीम कर के रख दें। कड़ी अब तक पर्याप्त स्टीम हो चुकी हो तो उसमें कोफ्ते डाल दें। हल्के हाथों से चलाते हुए मध्यम आंच पर पकाएं। गर्मा-गर्म सर्व करें। 





ध्यान रखें : अगर कोफ्तों को आकार देने में कोई दिक्कत आती है तो उसने एक बड़ा चम्मच बेसन मिला सकते हैं।

ताजमहल अथवा तेजो महल का वास्तविक रहस्य।


ताजमहल उर्फ़ तेजो महल से जुड़े कुछ और रहस्यमय बातें :-

1) क्या आप जानते हैं? ताजमहल के अंदर आज भी अनेक रहस्य कक्षों में दबाये बंद पड़े हैं, जिन्हें सरकार ने खुलवाने की जगह उनके दरवाजे हटा के पत्थरों से सील कर दिया...

2) इन कमरों के अंदर क्या हैं ये आप निम्नलिखित शोधो से समझ जायेंगे| सरकार ने किस कदर इस सारे भेद से जनता को गुमराह किया हुआ हैं खुद देख लीजिये...

(क) 1952 में जब एस.आर .राव पुरात्व अधिकारी थे तब उन्हें ताजमहल की एक दीवार में लम्बी चौड़ी दरार दिखाई दी। मरम्मत के दौरान आसपस की और ईंटे निकलवाने की जरुरत पड़ी, जब ईंटे निकाली गयी तो कक्ष में से अष्ट धातु की मूर्तियाँ दिखाई देने लगी... तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरु को ज्ञात करवाने पर निर्णय लिया गया की मूर्तियाँ जहाँ से निकली हैं वो जगह ही बंद करवा दी जाए ||
आपने "पी.एन.ओक" के द्वारा दिए गए 108 सबुतो में भी पढा होगा की :-

"68. स्पष्टतः मूल रूप से शाहज़हां के द्वारा चुनवाये गये इन दरवाजों को कई बार खुलवाया और फिर से चुनवाया गया है। सन् 1934 में दिल्ली के एक निवासी ने चुनवाये हुये दरवाजे के ऊपर पड़ी एक दरार से झाँक कर देखा था। उसके भीतर एक बृहद कक्ष (huge hall) और वहाँ के दृश्य को‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍ देख कर वह हक्का-बक्का रह गया तथा भयभीत सा हो गया। वहाँ बीचोबीच भगवान शिव का चित्र था जिसका सिर कटा हुआ था और उसके चारों ओर बहुत सारे मूर्तियों का जमावड़ा था। ऐसा भी हो सकता है कि वहाँ पर संस्कृत के शिलालेख भी हों। यह सुनिश्चित करने के लिये कि ताजमहल हिंदू चित्र, संस्कृत शिलालेख, धार्मिक लेख, सिक्के तथा अन्य उपयोगी वस्तुओं जैसे कौन कौन से साक्ष्य छुपे हुये हैं उसके सातों मंजिलों को खोल कर उसकी साफ सफाई करने की नितांत आवश्यकता है।"

"69. अध्ययन से पता चलता है कि इन बंद कमरों के साथ ही साथ ताज के चौड़ी दीवारों के बीच में भी हिंदू चित्रों, मूर्तियों आदि छिपे हुये हैं। सन् 1959 से 1962 के अंतराल में श्री एस.आर. राव, जब वे आगरा पुरातत्व विभाग के सुपरिन्टेन्डेंट हुआ करते थे, का ध्यान ताजमहल के मध्यवर्तीय अष्टकोणीय कक्ष के दीवार में एक चौड़ी दरार पर गया। उस दरार का पूरी तरह से अध्ययन करने के लिये जब दीवार की एक परत उखाड़ी गई तो संगमरमर की दो या तीन प्रतिमाएँ वहाँ से निकल कर गिर पड़ीं। इस बात को खामोशी के साथ छुपा दिया गया और प्रतिमाओं को फिर से वहीं दफ़न कर दिया गया जहाँ शाहज़हां के आदेश से पहले दफ़न की गई थीं। इस बात की पुष्टि अनेक अन्य स्रोतों से हो चुकी है। जिन दिनों मैंने ताज के पूर्ववर्ती काल के विषय में खोजकार्य आरंभ किया उन्हीं दिनों मुझे इस बात की जानकारी मिली थी जो कि अब तक एक भूला बिसरा रहस्य बन कर रह गया है। ताज के मंदिर होने के प्रमाण में इससे अच्छा साक्ष्य और क्या हो सकता है? उन देव प्रतिमाओं को जो शाहज़हां के द्वारा ताज को हथियाये जाने से पहले उसमें प्रतिष्ठित थे ताज की दीवारें और चुनवाये हुये कमरे आज भी छुपाये हुये हैं। " और हमारे देश का दुर्भाग्य ये की सरकार ने इस सारे रहस्यों की छानबीन करने की जगह सभी भेदों को दबाने का ही प्रयास किया....

ऐसा क्यों किया होगा ?? इसका कारण तो आप भी जानते हैं....

निष्कर्ष :- तो यही निकलता हैं की ताजमहल के अंदर बहुत रहस्य दबे पड़े हैं, जिससे हिन्दूओं को परिचित होना आवश्यक हैं...

अंत में :- सिर्फ ताज ही नहीं अपितु क़ुतुब मीनार ,जामा मस्जिद, लाल किला जैसे कई स्थापित्य धरोहर हिन्दू राजाओ द्वारा इस भव्य भारत को दिया हुआ हैं | इतिहास को तोड़ मरोड़ के पेश किया गया हैं, पर हमारा फर्ज हैं की जो भी सच जानने पढने को हमे मिलता हैं उसे हम ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुचाये और अपनी अगली पीढ़ी को हिन्दू होने का गर्व दिलाये |

सौजन्य : पाठक

ताजमहल के 20 तथ्य, जो आपको पता नहीं होगा।

ताजमहल के 20 तथ्य, जो आपको पता नहीं होगा।

ताज महल 
1. ताज की संरचना तीन परतों पर तैयार किया गया है; चट्टानों, गारा (मोर्टार) और पत्थर से आप यकीन माने कि यह बनावट नम और क्षति से हर समय संरक्षित रहता है।

2. ताजमहल चार स्तंभों पर टिका हुआ है और ये इस तरह है कि सभी बाहर की ओर झुका कर निर्माण किया गया हो ।

3. कहा जाता है कि यह ताजमहल के निर्माण को पूरा करने के लिए शाहजहां ने 22 वर्ष ले लिया। यह भी अनुमान है कि  निर्माण के समय के दौरान लगभग 32 लाख भारतीय मुद्रा इसमें लगा दिया गया था।

4. ताजमहल के लिए शाहजहां द्वारा 28 विभिन्न किस्मों के मार्बल पत्थर को आयात किया गया। यह भी कहा जाता है कि स्मारक का आधार अकेले रखी गई थी और इस काम को सप्ताह भर में पूरा किया गया था।

5. शाहजहां ने ताजमहल की भव्य सुंदरता के लिए तिब्बत से पत्थर, चीन से क्रिस्टल और श्रीलंका से Jades और पन्ने का उच्च किस्म का आयात करवाया था।

6. ताजमहल की वास्तुकला विश्वस्तरीय कहा जाता है। इसे बेहद शानदार बनाने के लिए, चार अलग अलग आर्किटेक्चरल स्टाइल का प्रयोग किया गया है।

ताज महल की बनावट
7. ताजमहल की नींव लकड़ी पर रखी हुयी है। यमुना नदी इसके आधार को नम और मजबूत बनाये रखता है और यही वजह है कि ये महान स्मारक नियमित समय के साथ खिसकति भी नहीं है ।

8. ताजमहल, कुतुब मीनार से भी लम्बे है। यह कुतुब मीनार की तुलना में लगभग 5 फीट लम्बे है।

9. इस महान स्मारक को देखने हर रोज यहाँ 12,000 दर्शकों के झुंड आते हैं।

10. ताजमहल, समय के साथ रंग बदलता है। यह सुबह में हल्के गुलाबी, शाम में दूधिया सफेद और रात में सुनहले सफेद जैसा प्रतीत होता है।


11. ताज को इस तरह से निर्माण किया गया है कि जैसे जैसे आप दूर चलेंगे यह बड़ा दिखेगा और जैसे ही आप दरवाजे के करीब आएंगे यह छोटा प्रतीत होगा। हमेशा यह देखा जाता है की जो भी ताजमहल देखने आता है वो अपने साथ एक छोटा ताज जरूर ले जाता है। 


मुमताज़ महल का कब्र
12. लोगों को वास्तविक कब्र दिखाई नहीं देता है। वे जमीन के सात फुट नीचे रखी है। केवल मुखौटा ही कब्रों के ऊपर रखा है जो लोगों को दीखता है।

13. ताज को इस तरीके से बनाया गया है कि उसका कब्र बिल्कुल सुडौल है। हालांकि पुरुष का कब्र महिला के कब्र से बड़ा होता है, वे लोग एक दूसरे के लिए बढ़िया सुडौल ही बनाते है।

14. जिस जगह पर ताज बनाया गया वह मूल रूप से राजा जय सिंह के स्वामित्व में था। शाहजहां ने वो उनसे उधार लिया और उसके बदले में आगरा शहर के बीच में एक भूमि दे दी। ऐसा कहा जाता है। 

15. किंवदंती है कि जिन्होंने ने ये ताजमहल बनाया था शाहजहां ने उनका हाथ कटवा दिया था लेकिन यह सब अभी तक साबित नहीं किया गया है।

16. ताज की दीवारों पर कुरान के कई आयतें को अंकित किया गया है। यह पक्ष भी कहा जाता है कि मुमताज की कब्र के साथ अल्लाह के 99 नामों के साथ खुदा है।

17. भारतीय इतिहासकार, प्रोफेसर P.N. Oak ने दावा किया है कि स्मारक शुरू में एक हिंदू मंदिर था जिसे 'तेजो महालया ' कहा जाता था। वो अपने पुस्तक ‘Taj Mahal- The True Story’ में इसके बारे में अधिक विस्तार से बताया है।

 About PN Oak


18. जब तक स्मारक का निर्माण कार्य पूरा किया गया तब तक मुमताज महल का शव मुम्मी बना कर रखा गया था। यह भी कहा जाता है कि शाहजहां उसके शरीर की रक्षा करने के लिए यूनानी डॉक्टरों को बुलवाया था।

19. जानकारों का कहना है की शाहजहां की इक्षा थी एक काले ताजमहल का निर्माण करने की जिसमे उन्हें भी दफनाया जाता। लेकिन इससे पहले कि वह ऐसा कर सकते, उनके बेटे औरंगजेब ने उसे उखाड़ फेंका।

20. जब ताज मूल रूप से डिजाइन किया गया था तो इसमें 16 फूलों का सेज था जो बाद में बदलाव के नाम पर अंग्रेजों द्वारा सुन्दर उद्यान के साथ बदल दिया गया था।

आज भी ब्रिटिशो द्वारा किया गया छेड़ छाड़ का एक प्रभाव इस स्मारक पर देख सकते हैं।

जनेऊ (यज्ञोपवीत) पहनने से क्या लाभ?

जनेऊ (यज्ञोपवीत) पहनने से क्या लाभ?

यज्ञोपवीत (संस्कृत संधि विच्छेद= यज्ञ+उपवीत)

पूर्व में बालक की उम्र आठ वर्ष होते ही उसका यज्ञोपवीत संस्कार कर दिया जाता था। वर्तमान में यह प्रथा लोप सी गयी है। यज्ञोपवीत पहनने का हमारे स्वास्थ्य से सीधा संबंध है। विवाह से पूर्व तीन धागों की तथा विवाहोपरांत छह धागों की जनेऊ धारण की जाती है।

मल-मूत्र विसर्जन के पूर्व जनेऊ को कानों पर कस कर दो बार लपेटना पड़ता है। इससे कान के पीछे की दो नसे जिनका संबंध पेट की आंतों से है। आंतों पर दबाव डालकर उनको पूरा खोल देती है। जिससे मल विसर्जन आसानी से हो जाता है तथा कान के पास ही एक नस से ही मल-मूत्र विसर्जन के समय कुछ द्रव्य विसर्जित होता है। जनेऊ उसके वेग को रोक देती है, जिससे कब्ज, एसीडीटी, पेट रोग, मूत्रन्द्रीय रोग, रक्तचाप, हृदय रोगों सहित अन्य संक्रामक रोग नहीं होते। जनेऊ पहनने वाला नियमों में बंधा होता है। वह मल विसर्जन के पश्चात अपनी जनेऊ उतार नहीं सकता। जब तक वह हाथ पैर धोकर कुल्ला न कर ले। अत: वह अच्छी तरह से अपनी सफाई करके ही जनेऊ कान से उतारता है। यह सफाई उसे दांत, मुंह, पेट, कृमि, जिवाणुओं के रोगों से बचाती है। जनेऊ का सबसे ज्यादा लाभ हृदय रोगियों को होता है। ...........

सिर पर चोटी क्यो रखी जाती है इसका वैज्ञानिक महत्व

सिर पर चोटी क्यो रखी जाती है इसका वैज्ञानिक महत्व::

एक सुप्रीप साइंस जो इंसान के लिये सुविधाएं जुटाने का ही नहीं, बल्कि उसे शक्तिमान बनाने का कार्य करता है। ऐसा परम विज्ञान जो व्यक्ति को प्रकृति के ऊपर नियंत्रण करना सिखाता है। ऐसा विज्ञान जो प्रकृति को अपने अधीन बनाकर मनचाहा प्रयोग ले सकता है। इस अद्भुत विज्ञान की प्रयोगशाला भी बड़ी विलक्षण होती है। एक से बढ़कर एक आधुनिकतम मशीनों से सम्पंन प्रयोगशालाएं दुनिया में बहुतेरी हैं, किन्तु ऐसी सायद ही कोई हो जिसमें कोई यंत्र ही नहीं यहां तक कि खुद प्रयोगशाला भी आंखों से नजर नहीं आती। इसके अदृश्य होने का कारण है- इसका निराकार स्वरूप। असल में यह प्रयोगशाला इंसान के मन-मस्तिष्क में अंदर होती है।

सुप्रीम सांइस- विश्व की प्राचीनतम संस्कृति जो कि वैदिक संस्कृति के नाम से विश्य विख्यात है। अध्यात्म के परम विज्ञान पर टिकी यह विश्व की दुर्लभ संस्कृति है। इसी की एक महत्वपूर्ण मान्यता के तहत परम्परा है कि प्रत्येक स्त्री तथा पुरुष को अपने सिर पर चोंटी यानि कि बालों का समूह अनिवार्य रूप से रखना चाहिये।

सिर पर चोंटी रखने की परंपरा को इतना अधिक महत्वपूर्ण माना गया है कि , इस कार्य को हिन्दुत्व की पहचान तक माना लिया गया। योग और अध्यात्म को सुप्रीम सांइस मानकर जब आधुनिक प्रयोगशालाओं में रिसर्च किया गया तो, चोंटी के विषय में बड़े ही महत्वपूर्ण ओर रौचक वैज्ञानिक तथ्य सामने आए।

चमत्कारी रिसीवर- असल में जिस स्थान पर शिखा यानि कि चोंटी रखने की परंपरा है, वहा पर सिर के बीचों-बीच सुषुम्ना नाड़ी का स्थान होता है। तथा शरीर विज्ञान यह सिद्ध कर चुका है कि सुषुम्रा नाड़ी इंसान के हर तरह के विकास में बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चोटी सुषुम्रा नाड़ी को हानिकारक प्रभावों से तो बचाती ही है, साथ में ब्रह्माण्ड से आने वाले सकारात्मक तथा आध्यात्मिक विचारों को केच यानि कि ग्रहण भी करती है

क्यों रखी जाती है सिर पर शिखा?

सिर पर शिखा ब्राह्मणों की पहचान मानी जाती है। लेकिन यह केवल कोई पहचान मात्र नहीं है। जिस जगह शिखा (चोटी) रखी जाती है, यह शरीर के अंगों, बुद्धि और मन को नियंत्रित करने का स्थान भी है। शिखा एक धार्मिक प्रतीक तो है ही साथ ही मस्तिष्क के संतुलन का भी बहुत बड़ा कारक है। आधुनिक युवा इसे रुढ़ीवाद मानते हैं लेकिन असल में यह पूर्णत: है। दरअसल, शिखा के कई रूप हैं।

आधुनकि दौर में अब लोग सिर पर प्रतीकात्मक रूप से छोटी सी चोटी रख लेते हैं लेकिन इसका वास्तविक रूप यह नहीं है। वास्तव में शिखा का आकार गाय के पैर के खुर के बराबर होना चाहिए। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि हमारे सिर में बीचोंबीच सहस्राह चक्र होता है। शरीर में पांच चक्र होते हैं, मूलाधार चक्र जो रीढ़ के नीचले हिस्से में होता है और आखिरी है सहस्राह चक्र जो सिर पर होता है। इसका आकार गाय के खुर के बराबर ही माना गया है। शिखा रखने से इस सहस्राह चक्र का जागृत करने और शरीर, बुद्धि व मन पर नियंत्रण करने में सहायता मिलती है।

शिखा का हल्का दबाव होने से रक्त प्रवाह भी तेज रहता है और मस्तिष्क को इसका लाभ मिलता है।

आलू का कुरकुरा सालाद

 आलू का कुरकुरा सालाद कैसे बनायें। 



सामग्रियां:

छोटे आलू (चार टुकड़ों में कटा हुआ) : 800 ग्राम
जैतून का तेल (यानी ओलिव आयल) : 2  बड़े चम्मच
कसूरी मेथी : 1 बड़ा चम्मच
हरा धनिया (बारीक कटी हुई) : 1 बड़ा चम्मच
काली मिर्च पिसी हुई : 1/4 छोटा चम्मच
नमक स्वादानुसार

शहद की ड्रेसिंग के लिए:

सफेद सिरका : 1 बड़ा चम्मच
शहद : डेढ़ छोटे चम्मच
एक्स्ट्रा वर्जिन ऑलिव ऑयल : 2 बड़े चम्मच

बनाने की विधि:

सबसे पहले माइक्रोवेव ओवन को 220 डिग्री सेंटीग्रेड पर पहले से हिट कर लें। उसके बाद एक बॉल में आलू ले लें और उस पर तेल, मेथी, धनिया, काली मिर्च और नमक को अच्छी तरह मिलाएं और ओवन की रोस्टिंग ट्रे में डाल कर करीब आधा घंटा तक पकाएं। बीच में आलू को इधर-उधर पलटे ताकि सब तरफ से सुनहरे पक जाए।


अब बाहर निकाल कर फिर से बॉल में डालें। शहद की ड्रेसिंग की सारी सामग्री को आपस में मिला लें और उसे ठंडे हो चुके आलुओं पर अच्छी तरह से ऊपर से डालें। जब सारी प्रक्रिया पूरी हो जाये तो सालाद या पत्तागोभी के पत्तों पर रखकर अपने मेहमानों को सर्व करें।

रोटी का रोल

रोटी का रोल कैसे बनायें। 








सामग्रियां:

प्याज (छोटे छोटे टुकड़ों में कटा हुआ) : 1  बड़ा चम्मच
लाल, पीली शिमला (मिर्च कटी हुई) : 1  कटोरी
पनीर (बहुत छोटे छोटे टुकड़ों में कटा हुआ) : 100 ग्राम
गाजर (कसी हुई) : 1 कटोरी
टमाटर (बारीक कटा हुआ) : 1 /2  कटोरी
हरी मिर्च (बारीक कटा हुआ) : 1/2 छोटा चम्मच
राजमा या काले चने (उबले हुए) : 1 कटोरी
हरे धनिए की चटनी : 1 कटोरी
क्रीम (ताजा फटी हुई) : 2 बड़े चम्मच
नमक अगर आवश्यक लगे तो इस्तेमाल करें
मैदे की बारीक बेली रोटियां : 4

बनाने की विधि : 

एक पैन में थोड़ा सा मक्खन लेकर आग पर पिघलाएं। इसमें प्याज, शिमला मिर्च, राजमा या काले चने, हरी मिर्च, गाजर व पनीर के टुकड़ों को डालकर हल्का भून कर रख लें। ताजा रोटियां पर एक परत हरी चटनी की लगाएं और उस पर हल्की क्रीम डालते हुए सब्जियों का मिश्रण फैला दें। रोल करें। रोल को छोटे टुकड़ों में काटें। अब आपका रोटी रोल तैयार है। अब इसमें टूथपिक लगाकर गरमागरम सर्व करें।

एक्शन सीन का वर्णन कैसे करें ? स्क्रिप्ट राइटिंग के टिप्स और सुझाव


एक्शन सीन का वर्णन कैसे करें ? स्क्रिप्ट राइटिंग के टिप्स और सुझाव



कागज (पटकथा) पर एक एक्शन दृश्य लाना कुछ लेखकों के लिए मुश्किल हो सकता है। इसलिए नहीं कि वे बुरे लेखकों के लिये लिख रहे हैं बल्कि हम में से ज्यादातर एक हाई स्पीड कार का पीछा करने के लिए, एक खूनी मुठभेड़ के दौरान या एक सुरुचिपूर्ण ढंग से नृत्य राजा फू विवाद में शामिल होने का कोई अनुभव नहीं है। तो, अगर आप एक पटकथा लेखक जो भी एक अच्छा सामरी और अहिंसा की एक दृढ़ विश्वास है, कैसे आप एक अच्छे एक्शन सीन लिख सकता हूँ?


Illustration

चलो हम लोग एक एक्शन सीन लिखें। इस के लिए, एक चरित्र का निर्माण करते हैं और उसे नेहा नाम देते हैं। हमारे दृश्य में, नेहा बहुत गुस्से में है उसे एक बंदूक मिला है और वो एक कमरे में जाती है जहां बुरे लोग हैं। हम लोग ये नहीं लिखने जा रहे की कहानी कहा ख़त्म हो रही है बल्कि उसे के चरम पर ले जा कर छोड़ देना है। तो यहाँ हमे एक आईडिया मिलेगा की हमे कैसे एक एक्शन सीन को तैयार करना है।


Action In script

"नेहा अपनी बंदूक की दुबारा जांच करती है और कमरे में प्रवेश करती है। बुरे लोग उसके हाथ में बंदूक देखकर चकित होता है। नेहा बिना सोचे गोलियां चलना शुरू कर देती है। बुरे लोग खुद को बचाने के लिए इधर उधर भागने लगते हैं।"


एक लड़ाई दृश्य लिखने के लिए, स्क्रिप्ट राइटिंग के टिप्स और सुझाव।

दिखाओ, बताओ मत

पटकथा लेखन अन्य प्रारूपों से अलग है, क्योंकि एक पटकथा में, कुछ को शायद ही कभी दर्शक की कल्पना या व्याख्या के लिए छोड़ दिया जाता है। सब कुछ पटकथा में विस्तृत किया जाता है। इसलिए, सुनिश्चित करें कि आप अपने दृश्य में क्या दिखाने के लिए सोच रहे है, और अभी इसके बारे में पाठक / दर्शक नहीं बता सकते हैं।


ख़राब लेखन : "नेहा अपनी बंदूक की जांच करती है और कमरे में प्रवेश करती है।"

अच्छा लेखन : "नेहा के कांपते हाथ बन्दुक के बुलेट चैम्बर को खोलती है। उसके हाथ फिर से चैम्बर बंद करते उससे पहले उसकी आँखें गोलियों की गिनती करती है। फिर वो एक गहरी सांस लेती है और एक पल इंतज़ार करती है नेहा पूरी ताकत के साथ दरवाजे पर पैर मरती है।"

उपरोक्त उदाहरण में,  नेहा कमरे में कैसे प्रवेश करती है का एक्शन ही सिर्फ नहीं बताया गया है बल्कि इस सीन में एक छोटा सा टेंशन भी दिया गया है। याद रहे "टेंशन (तनाव), एक्शन (घटनाक्रम) का इम्पोर्टेन्ट (महत्वपूर्ण) भाग है"
चलो थोड़ा आगे चलते हैं;

ख़राब : "वो लोग (बुरे लोग) नेहा को रूम के अंदर घुसते देखता है और वपन बन्दुक को बाहर निकालता है।"

अच्छा लेखन : "एक धमाके के साथ दरवाजा खुलता है और नेहा अपने हाथ में बन्दुक लेकर प्रवेश करती है। दो व्यक्ति; एक गंजा आदमी और एक लंबा आदमी सामने खड़ा दिखता है।"

आप ऊपर देख सकते हैं, दृश्य के बारे में यह सभी विवरण का उल्लेख करना जरूरी है और इसके सारे चरित्र एक्शन लाइन में है। यह एक अच्छी आदत है कोई फर्क नहीं पड़ता कि कैसे छोटे-मोटे उनकी भूमिका कर रहे हैं अपने सभी वर्ण, नाम के लिए है।

Push The Tempo


काम बोलता है बातें नहीं! इसलिए, अपने शब्दों दृश्य में अपनी कार्रवाई की तीव्रता मैच की जरूरत है। तुम सिर्फ अपने चरित्र 'दर्ज' एक कमरे या एक दीवार के पीछे 'छिपाने' नहीं बना सकते। कार्रवाई लाइन दृश्य की गति से मेल खाना चाहिए। बुरा: "गंजे आदमी जल्दी से उसकी बंदूक बाहर ले गया और नेहा पर गोली चलाई। लंबा आदमी के रूप में अच्छी तरह से उसकी बंदूक पकड़ लिया, जबकि नेहा एक स्तंभ के पीछे छिपा दिया। " अच्छा: "गंजे आदमी बिजली की तरह उसकी बंदूक बाहर खींच लिया और ट्रिगर निचोड़ा। लंबा आदमी उसके बगल में एक बैरल पर रखा उसकी बंदूक के लिए तले हुए। बाल्ड आदमी को वापस शूटिंग, नेहा एक स्तंभ के पीछे कूद गए और कवर ले लिया। "

Make It Quick


"का ब्यौरा महत्वपूर्ण है, लेकिन इतना समय है। अपनी कार्रवाई को अनावश्यक रूप से खींचें करने के लिए नहीं याद रखें। बेकार विवरण बाहर रखने के द्वारा छोटे वाक्यों का प्रयोग करें। " fffffThis एक उपन्यास और एक पटकथा में एक एक्शन दृश्य के बीच मुख्य अंतर यह है; केवल क्या आप कैमरे पर शूट कर सकते हैं लिखें। बुरा: "गोलियों के बीच, नेहा खुद स्तंभ के पीछे छिपा रखा है। गोलियों उसके चारों ओर उड़ान रखा के रूप में वह उसके हाथ में बंदूक आयोजित मजबूती से। नेहा तो इंतजार कर रहे थे उसे हमलावरों की गोलियों से बाहर चलाने के लिए। और वह क्षणिक चुप्पी सुना है, वह जल्दी स्तंभ के पीछे से peeked और दो पुरुषों के उद्देश्य से। " अच्छा: "नेहा अभी भी खड़ा था के रूप में गोलियां उसके चारों ओर उड़ान भरी। बुरे लोगों के गोलियों से बाहर भाग गया और अपनी बंदूकों को फिर से लोड करने के लिए निकल। सही है तो, नेहा उसे कवर से बाहर कूद गया और उसके हमलावरों की दिशा में उसकी बंदूक के उद्देश्य से। वह कई बार ट्रिगर खींच लिया। "



End of Narration For – How To Describe An Action/Fight Scene in Screenplays:



छोटे वाक्यों में अपनी कार्रवाई का वर्णन अत्यधिक की सिफारिश की है। यह स्क्रिप्ट पढ़ी और उत्पादन के लिए नीचे तोड़ने के लिए आसान बनाता है। एक अभ्यास के रूप में, आप यूट्यूब पर यादृच्छिक कार्रवाई दृश्यों को देखने और उन्हें नीचे लिखने की कोशिश कर सकते हैं।


Practical Example:


चलो एक उदाहरण के रूप में इस विडियो को देखते हैं।




Video: How to write a good action scene in a Screenplay?






क्या आप बटुकेश्वर दत्त के बारे में जानते हैं ??

15 साल जेल गुजारने वाले बटुकेश्वर दत्त पटना की सड़कों पर खाक छानने को विवश हो गये थे।


क्या मेरे प्यारे देशवासी भगत सिंह के साथी बी० के० दत्त यानि की बटुकेश्वर दत्त के बारे में जानते हैं ???
अगर आप असेम्बली में भगत सिंह के साथ बम फेंक कर पूरे विश्व को भोच्च्का कर देने वाले क्रन्तिकारी को सोच रहे हैं तो आप बिलकुल सही हैं।
बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह का पेपर कट 

किन्तु क्या किसी को मालूम है कि सन १९३० के पश्चात उस महान हुतात्मा का क्या हुआ।

असेम्बली में बम फेंक कर भगत सिंह के साथ अपनी ग्रिफ्तारी देकर बटुकेश्वर जी को लम्बी कारावास हो गयी। इससे पहले इनका जीवन सम्पन्नता के साथ बीत रहा था।

लम्बे कारावास के बाद स्वतंत्र भारत में उनके साथ क्या हुआ?

स्वतंत्र भारत ने उन्हें क्या दिया?

आजादी की खातिर 15 साल जेल की सलाखों के पीछे गुजारने वाले बटुकेश्वर दत्त को आजाद भारत में रोजगार मिला एक सिगरेट कंपनी में एजेंट का, जिससे वह पटना की सड़कों पर खाक छानने को विवश हो गये।
बाद में उन्होंने बिस्कुट और डबलरोटी का एक छोटा सा कारखाना खोला, लेकिन उसमें काफी घाटा हो गया और जल्द ही बंद हो गया। कुछ समय तक टूरिस्ट एजेंट एवं बस परिवहन का काम भी किया ,किन्तु वहां भी वे असफल रहे. उनके पास जीविका का कोई साधन नहीं था। दो-दो दिन जेल काटने वाले और उन चोर उचक्कों को जो कांग्रेसियों के चमचे थे उन पर आजाद सरकार सरकारी परमिट, बस परमिट लुटा रही थी। लोगों के समझाने के पश्चात् दत्त साहब एक बस के परमिट के लिए पटना के जिलाधिकारी के पास गए।
जिलाधिकारी ने उन्हें पहचानने से भी इनकार कर दिया , और उनसे कहा की यदि आप बटुकेश्वर दत्त हैं तो प्रमाण लेकर आईये. जब दत्त जी के साथ गए लोगों ने जिलाधिकारी को समझाना चाहा तो वहां पर उपस्थित कांग्रेसी गुंडों ने उन्हें वहां से धकियाकर बहार निकाल दिया. अत: वे वहां से आकर पटना में ही एक अनजान से स्थान पर अपनी पत्नी अंजली दत्त के साथ गरीबी में ही जीवन काटने लगे. १९६२ के आस पास जब वो बीमार रहने लगे, तब कुछ राष्ट्रभक्तों ने इनके बारे में जनता को जागरूक करने का बीड़ा उठाया. । बटुकेश्वर दत्त के 1962 में अचानक बीमार होने के बाद उन्हें गंभीर हालत में पटना के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया। इस पर उनके मित्र चमनलाल आजाद ने एक लेख में लिखा, क्या दत्त जैसे कांतिकारी को भारत में जन्म लेना चाहिए, परमात्मा ने इतने महान शूरवीर को हमारे देश में जन्म देकर भारी भूल की है। खेद की बात है कि जिस व्यक्ति ने देश को स्वतंत्र कराने के लिए प्राणों की बाजी लगा दी और जो फांसी से बाल-बाल बच गया, वह आज नितांत दयनीय स्थिति में अस्पताल में पड़ा एडियां रगड़ रहा है और उसे कोई पूछने वाला नहीं है।

इसके बाद सत्ता के गलियारों में हड़कंप मच गया और आजाद, केंद्रीय गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा और पंजाब के मंत्री भीमलाल सच्चर से मिले। पंजाब सरकार ने एक हजार रुपए का चेक बिहार सरकार को भेजकर वहां के मुख्यमंत्री के बी सहाय को लिखा कि यदि वे उनका इलाज कराने में सक्षम नहीं हैं तो वह उनका दिल्ली या चंडीगढ़ में इलाज का व्यय वहन करने को तैयार हैं।
बिहार सरकार की उदासीनता और उपेक्षा के कारण क्रांतिकारी बैकुंठनाथ शुक्ला पटना के सरकारी अस्पताल में असमय ही दम तोड़ चुके थे। अत: बिहार सरकार हरकत में आयी और पटना मेडिकल कॉलेज में ड़ॉ मुखोपाध्याय ने दत्त का इलाज शुरू किया। मगर उनकी हालत बिगड़ती गयी, क्योंकि उन्हें सही इलाज नहीं मिल पाया था और 22 नवंबर 1964 को उन्हें दिल्ली लाया गया।
दिल्ली पहुंचने पर उन्होंने पत्रकारों से कहा था, मुझे स्वप्न में भी ख्याल न था कि मैं उस दिल्ली में जहां मैने बम डाला था, एक अपाहिज की तरह स्ट्रेचर पर लाया जाउंगा। उन्हें सफदरजंग अस्पताल में भर्ती किया गया। पीठ में असहनीय दर्द के इलाज के लिए किए जाने वाले कोबाल्ट ट्रीटमेंट की व्यवस्था केवल एम्स में थी, लेकिन वहां भी कमरा मिलने में देरी हुई। 23 नवंबर को पहली दफा उन्हें कोबाल्ट ट्रीटमेंट दिया गया और 11 दिसंबर को उन्हें एम्स में भर्ती किया गया।
बाद में पता चला कि दत्त बाबू को कैंसर है और उनकी जिंदगी के चंद दिन ही शेष बचे हैं। भीषण वेदना झेल रहे दत्त चेहरे पर शिकन भी न आने देते थे।
पंजाब के मुख्यमंत्री रामकिशन जब दत्त से मिलने पहुंचे और उन्होंने पूछ लिया, हम आपको कुछ देना चाहते हैं, जो भी आपकी इच्छा हो मांग लीजिए। छलछलाई आंखों और फीकी मुस्कान के साथ उन्होंने कहा, हमें कुछ नहीं चाहिए। बस मेरी यही अंतिम इच्छा है कि मेरा दाह संस्कार मेरे मित्र भगत सिंह की समाधि के बगल में किया जाए।
 श्री दत्त की मृत्यु 20 जुलाई, 1965 को नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में हुई। मृत्यु के बाद इनका दाह संस्कार इनके अन्य क्रांतिकारी साथियों-भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव की समाधि स्थल पंजाब के हुसैनी वाला में किया गया .

राष्ट्र विरोधी व् हिन्दू विरोधी था गाँधी का असहयोग आन्दोलन?

राष्ट्र विरोधी व् हिन्दू विरोधी था गाँधी का असहयोग आन्दोलन?

"१९०६ के आस-पास से ही कोंग्रेस में मतभेद शुरू हो गए थे। कोंग्रेस नरम व गरम दलों में विभाजित हो गयी थी।"
नरम दल यानि अंग्रेजों की स्वामिभक्ति करने वाला दल था जिसके नेता थे गोखले व मोती लाल नेहरू। दूसरा गरम दल जिसके नेता लोक मान्य तिलक थे। तिलक का नारा था ,"स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मै उसे लेकर रहूँगा। " या कह सकते हैं कि कोंग्रेस का गरम दल वास्तव में एक राष्ट्रवादी कोंग्रेस का रूप था। यानि कि १९०६ से १९२० तक तिलक के नेर्तत्व में कोंग्रेस एक राष्ट्रवादी दल रहा। लेकिन १९१६ में गाँधी के अफ्रीका से आने के बाद स्थिति बदलनी शुरू हो गयी।
सन १९२० में तिलक जी के स्वर्गवास के पश्चात अचानक परिस्थितियों ने अवसर दिया और गाँधी कोंग्रेस का बड़ा नेता बन गए।

गाँधी अगर चाहते तो वह तिलक के पूर्ण स्वराज्य की मांग को मजबूती प्रदान कर सकते थे। किन्तु गाँधी जी ने ऐसा नहीं किया। गाँधी जी ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अपना पहला आन्दोलन शुरू किया,जो इतिहास में असहयोग आन्दोलन के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

वास्तव में असहयोग आन्दोलन, खिलाफत आन्दोलन का एक हिस्सा था।
अब सबसे प्रथम यह जानना आवश्यक है कि खिलाफत आन्दोलन क्या बला थी?

भारतीय इतिहास में खिलाफत आन्दोलन का वर्णन तो है किन्तु कही विस्तार से नहीं बताया गया कि खिलाफत आन्दोलन वस्तुत: भारत की स्वाधीनता के लिए नहीं अपितु वह एक राष्ट्र विरोधी व हिन्दू विरोधी आन्दोलन था।

खिलाफत आन्दोलन दूर देश तुर्की के खलीफा को गद्दी से हटाने के विरोध में भारतीय मुसलमानों द्वारा चलाया गया आन्दोलन था। असहयोग आन्दोलन भी खिलाफत आन्दोलन की सफलता के लिए चलाया गया आन्दोलन था। आज भी अधिकांश भारतीयों को यही पता है कि असहयोग आन्दोलन स्वतंत्रता प्राप्ति को चलाया गया कोंग्रेस का प्रथम आन्दोलन था। किन्तु सत्य तो यही है कि इस आन्दोलन का कोई भी रास्ट्रीय लक्ष्य नहीं था।

प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की की हार के पश्चात अंग्रेजों ने वहां के खलीफा को गद्दी से पदच्युत कर दिया था। खिलाफत+असहयोग आंदोलनों का लक्ष्य तुर्की के सुलतान की गद्दी वापस दिलाने के लिए चलाया गया आन्दोलन था।

यहाँ एक हास्यप्रद बात और है कि तुर्की की जनता ने स्वं ही कमाल अता तुर्क के नेर्तत्व्य में तुर्की के खलीफा को देश निकला दे दिया था।

भारत में मोहम्मद अली जोहर व शोकत अली जोहर दो भाई खिलाफत का नेर्तत्व कर रहे थे। गाँधी ने खिलाफत के सहयोग के लिए ही असहयोग आन्दोलन की घोषणा कर डाली। जब कुछ राष्ट्रवादी कोंग्रेसियों ने इसका विरोध किया तो गाँधी ने यहाँ तक कह डाला,"जो खिलाफत का विरोधी है तो वह कोंग्रेस का भी शत्रु है। "
इतिहास साक्षी है कि जिस समय खिलाफत आन्दोलन फेल हो गया ,तो मुसलमानों ने इसका सारा गुस्सा हिदू जनता पर निकला, सबसे भयंकर स्थिति केरल में मालाबार में हुए जो इतिहास में मोपला कांड के नाम से जानी जाती है.

मोपला कांड में ही अकेले २० हजार हिन्दुओं को काट डाला गया ,२० हजार से ज्यादा को मुस्लमान बना डाला. १० हजार से अधिक हिदू ओरतों के बलात्कार हुए . और यह सब हुआ गाँधी के असहयोग आन्दोलन के कारण.

इस प्रकार कहा जा सकता है कि १९२० तक तिलक की जिस कोंग्रेस का लक्ष्य स्वराज्य प्राप्ति था गाँधी ने अचानक उसे बदलकर एक दूर देश तुर्की के खलीफा के सहयोग और मुस्लिम आन्दोलन में बदल डाला, जिसे वहांके जनता ने भी लात मरकर देश निकला दे दिया ।
दूर देश में मुस्लिम राज्य की स्थापना के लिए स्वराज्य की मांग को कोंग्रेस द्वारा ठुकराना इस आन्दोलन को चलाना किस प्रकार राष्ट्रवादी था या कितना राष्ट्रविरोधी भारतीय इतिहास में इस सत्य का लिखा जाना अत्यंत आवश्यक है अन्यथा भारतीय आजादी का दंभ भरने वाली कोंग्रेस लगातार भारत को इसे ही झूठ भरे इतिहास के साथ गहन अन्धकार की और रहेगी.

श्री राम द्वारा शुद्र की हत्या : सत्य अथवा असत्य।

क्या श्री राम ने शुद्र तपस्वी शम्बूक का वध किया था?

कई बार ऐसा हुआ है कि हिन्दू धर्म के विषय में कुछ लोगों ने मह्रिषी शम्बूक की हत्या (श्री राम के द्वारा ) की बात करते हैं , जिनको एक आदर्श पुरुष मानकर पूरा भारत पूजता है, वे इतने निर्दयी कैसे हो सकते हैं कि बिना किसी कारन एक शम्बूक का वध केवल मात्र इसलिए कर दें कि शम्बूक शुद्र थे.
सर्वप्रथम तो में यहाँ पर एक बात अवश्य बताना चाहूँगा कि यह प्रसंग भव्भूती द्वारा रचित उत्तर रामायण के तृतीय चरण में शम्बूक वध में आता है. और यह काव्य रूप में है.
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काव्य में भावार्थ निकाला जाता है, और हजारों वर्ष पूर्व रचित उत्तर रामायण का भावार्थ कोई ज्ञानी पंडित ही लिख सकता है.
मै भी कुछ लोगों से मिला. शम्बूक वध को कई ब्लोगों में पढ़ा, कई पुस्तके पढ़ी, तो एक निष्कर्ष पर पहुंचा कि इस प्रसंग को ब्रह्मण व शुद्र का प्रसंग बताने वाले या तो महामूर्ख हैं या फिर देशद्रोही.

शम्बूक वध के तीसरे भाग आता है कि राम के प्रहार से शुद्र शम्बूक का वध हो गया. राम को बदनाम करने वाले केवल यही बात लोगों को बहकाने के लिए कहते हैं , और दलितों का धर्मांतरण करने वाली इसाई मिशनरियां तो इस प्रसंग की इस घटना को और भी मसालेदार बनाकर दलितों के आगे परोसती हैं.

वास्तव में यह प्रसंग इस प्रकार है कि राम के पास एक वृद्ध ब्रह्मण अपने १३ वर्ष के पुत्र का मृत शरीर लेकर आता है और राम से कहता कि शुद्र शम्बूक ने मेरे पुत्र का वध अपनी तपस्या के लिए कर दिया है. (यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि शम्बूक को शुद्र इसलिए कहा गया है कि वह इक नरबली वाला कोई अनुष्ठान कर रहा था. )

अब इसी प्रसंग की पूरी बात करते है.

प्रसंग है कि "राम शम्बूक के पास जाते हैं और उसका वध कर देते हैं और शम्बूक एक दिव्य पुरुष के रूप में बदल जाता है तथा "अन्वेष्ट्व्यो यद्सी भुवने भूतनाथ: शरण्य" बोलता हुआ श्री राम के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो जाता है और वृद्ध ब्रह्मण को भी अपना पुत्र प्राप्त हो जाता है."

पुरे प्रसंग को पढ़कर सारा सत्य सामने आ जाता है कि इसका क्या भावार्थ होना चाहिए.

१- शम्बूक को शुद्र किसी जातिवाचक संज्ञा के रूप में नहीं कहा गया है.

२- राम ने शम्बूक का वध नहीं किया, उन्होंने शम्बूक के शुद्र रूप का वध किया और शम्बूक को अपने वचनों से ब्रह्मण बनाया.

३- प्रसंग कहता है कि इस प्रकार वृद्ध ब्रह्मण का पुत्र भी जीवित हो गया, यानि कि शम्बूक ने उस वृद्ध ब्रह्मण को अपना पिता मान कर उसकी सेवा शुरू कर दी.

४- राम ने केवल वही कार्य किया जो कि उनके महान चरित्र के अनुरूप था.

अब आप ही बताएं कि पूरे प्रसंग की बात न करके प्रसंग की केवलमात्र एक पंक्ति को ही मसाला बनाकर परोसने वाले लोगों को आप क्या कहेंगे ????

भारतीय फिल्म निर्माता


फिल्म कैसे बनाएं ? फिल्म निर्माण की प्रक्रिया


हम हमेशा अच्छी वीडियो फिल्म निर्माण के लिए तत्पर रहते हैं, ताकि हम उम्मीदवारों को सिखा सके filmmaking and technology की नैतिकता के बारे में


यहां एक फिल्म निर्माण ट्यूटोरियल वीडियो है। जिसमे फिल्म की स्क्रिप्ट फिल्म के कहानी की संरचना के बारे में बताया गया है। और इस विडियो को Film Vibe ने तैयार किया है। 


भरवा भिंडी

भरवा भिंडी


भरवा भिंडी कैसे बनाएं?


सामग्रियां - 
धुली हुई भिंडी - 500 ग्राम,
तेल - 4 चम्मच,
जीरा - 1 बड़ा चम्मच,
कटा हुआ प्याज - 1 बड़े आकार का,
कटी हरी मिर्च (बीज निकाली हुयी)  - 2,
अदरक (बारिक से कटी हुई) -  2 सेंटीमीटर की,
टमाटर (कटा हुआ) - 1,
हींग पाउडर - चुटकी भर

भिन्डी के अंदर भरावन के लिए सामग्री-
हल्दी पाउडर 3 बड़े चम्मच, आमचूर 2 बड़े चम्मच, मिर्च पाउडर बड़ा 1 चम्मच, नमक स्वादानुसार

बनाने की विधि :
भिंडी को चीरा लगाकर छोटे टुकड़ों में काटें भरावन की सामग्री को मिलाकर भिंडी में स्थित करें एक पैन में तेल डालकर जीरा तड़का लगाएं इसमें प्याज हरी मिर्च और अदरक डालें प्याज का रंग गोल्डन ब्राउन होने तक तले हींग डालें कुछ देर बाद टमाटर मिलाकर मसाले का प्राय करते रहें अब भिंडी डालें और थोड़ा देर के लिए पैन को ढक दें भिंडी कुरकुरी रखना चाहें तो बिना ढके पकाएं मसाले में भिंडी के टुकड़ों को अच्छी तरह लटपट होने दें और मेहमानों को गरम गरम परोसें और सब मिलकर भरवा भिंडी का मजा ले।