क्या आप बटुकेश्वर दत्त के बारे में जानते हैं ??

15 साल जेल गुजारने वाले बटुकेश्वर दत्त पटना की सड़कों पर खाक छानने को विवश हो गये थे।


क्या मेरे प्यारे देशवासी भगत सिंह के साथी बी० के० दत्त यानि की बटुकेश्वर दत्त के बारे में जानते हैं ???
अगर आप असेम्बली में भगत सिंह के साथ बम फेंक कर पूरे विश्व को भोच्च्का कर देने वाले क्रन्तिकारी को सोच रहे हैं तो आप बिलकुल सही हैं।
बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह का पेपर कट 

किन्तु क्या किसी को मालूम है कि सन १९३० के पश्चात उस महान हुतात्मा का क्या हुआ।

असेम्बली में बम फेंक कर भगत सिंह के साथ अपनी ग्रिफ्तारी देकर बटुकेश्वर जी को लम्बी कारावास हो गयी। इससे पहले इनका जीवन सम्पन्नता के साथ बीत रहा था।

लम्बे कारावास के बाद स्वतंत्र भारत में उनके साथ क्या हुआ?

स्वतंत्र भारत ने उन्हें क्या दिया?

आजादी की खातिर 15 साल जेल की सलाखों के पीछे गुजारने वाले बटुकेश्वर दत्त को आजाद भारत में रोजगार मिला एक सिगरेट कंपनी में एजेंट का, जिससे वह पटना की सड़कों पर खाक छानने को विवश हो गये।
बाद में उन्होंने बिस्कुट और डबलरोटी का एक छोटा सा कारखाना खोला, लेकिन उसमें काफी घाटा हो गया और जल्द ही बंद हो गया। कुछ समय तक टूरिस्ट एजेंट एवं बस परिवहन का काम भी किया ,किन्तु वहां भी वे असफल रहे. उनके पास जीविका का कोई साधन नहीं था। दो-दो दिन जेल काटने वाले और उन चोर उचक्कों को जो कांग्रेसियों के चमचे थे उन पर आजाद सरकार सरकारी परमिट, बस परमिट लुटा रही थी। लोगों के समझाने के पश्चात् दत्त साहब एक बस के परमिट के लिए पटना के जिलाधिकारी के पास गए।
जिलाधिकारी ने उन्हें पहचानने से भी इनकार कर दिया , और उनसे कहा की यदि आप बटुकेश्वर दत्त हैं तो प्रमाण लेकर आईये. जब दत्त जी के साथ गए लोगों ने जिलाधिकारी को समझाना चाहा तो वहां पर उपस्थित कांग्रेसी गुंडों ने उन्हें वहां से धकियाकर बहार निकाल दिया. अत: वे वहां से आकर पटना में ही एक अनजान से स्थान पर अपनी पत्नी अंजली दत्त के साथ गरीबी में ही जीवन काटने लगे. १९६२ के आस पास जब वो बीमार रहने लगे, तब कुछ राष्ट्रभक्तों ने इनके बारे में जनता को जागरूक करने का बीड़ा उठाया. । बटुकेश्वर दत्त के 1962 में अचानक बीमार होने के बाद उन्हें गंभीर हालत में पटना के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया। इस पर उनके मित्र चमनलाल आजाद ने एक लेख में लिखा, क्या दत्त जैसे कांतिकारी को भारत में जन्म लेना चाहिए, परमात्मा ने इतने महान शूरवीर को हमारे देश में जन्म देकर भारी भूल की है। खेद की बात है कि जिस व्यक्ति ने देश को स्वतंत्र कराने के लिए प्राणों की बाजी लगा दी और जो फांसी से बाल-बाल बच गया, वह आज नितांत दयनीय स्थिति में अस्पताल में पड़ा एडियां रगड़ रहा है और उसे कोई पूछने वाला नहीं है।

इसके बाद सत्ता के गलियारों में हड़कंप मच गया और आजाद, केंद्रीय गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा और पंजाब के मंत्री भीमलाल सच्चर से मिले। पंजाब सरकार ने एक हजार रुपए का चेक बिहार सरकार को भेजकर वहां के मुख्यमंत्री के बी सहाय को लिखा कि यदि वे उनका इलाज कराने में सक्षम नहीं हैं तो वह उनका दिल्ली या चंडीगढ़ में इलाज का व्यय वहन करने को तैयार हैं।
बिहार सरकार की उदासीनता और उपेक्षा के कारण क्रांतिकारी बैकुंठनाथ शुक्ला पटना के सरकारी अस्पताल में असमय ही दम तोड़ चुके थे। अत: बिहार सरकार हरकत में आयी और पटना मेडिकल कॉलेज में ड़ॉ मुखोपाध्याय ने दत्त का इलाज शुरू किया। मगर उनकी हालत बिगड़ती गयी, क्योंकि उन्हें सही इलाज नहीं मिल पाया था और 22 नवंबर 1964 को उन्हें दिल्ली लाया गया।
दिल्ली पहुंचने पर उन्होंने पत्रकारों से कहा था, मुझे स्वप्न में भी ख्याल न था कि मैं उस दिल्ली में जहां मैने बम डाला था, एक अपाहिज की तरह स्ट्रेचर पर लाया जाउंगा। उन्हें सफदरजंग अस्पताल में भर्ती किया गया। पीठ में असहनीय दर्द के इलाज के लिए किए जाने वाले कोबाल्ट ट्रीटमेंट की व्यवस्था केवल एम्स में थी, लेकिन वहां भी कमरा मिलने में देरी हुई। 23 नवंबर को पहली दफा उन्हें कोबाल्ट ट्रीटमेंट दिया गया और 11 दिसंबर को उन्हें एम्स में भर्ती किया गया।
बाद में पता चला कि दत्त बाबू को कैंसर है और उनकी जिंदगी के चंद दिन ही शेष बचे हैं। भीषण वेदना झेल रहे दत्त चेहरे पर शिकन भी न आने देते थे।
पंजाब के मुख्यमंत्री रामकिशन जब दत्त से मिलने पहुंचे और उन्होंने पूछ लिया, हम आपको कुछ देना चाहते हैं, जो भी आपकी इच्छा हो मांग लीजिए। छलछलाई आंखों और फीकी मुस्कान के साथ उन्होंने कहा, हमें कुछ नहीं चाहिए। बस मेरी यही अंतिम इच्छा है कि मेरा दाह संस्कार मेरे मित्र भगत सिंह की समाधि के बगल में किया जाए।
 श्री दत्त की मृत्यु 20 जुलाई, 1965 को नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में हुई। मृत्यु के बाद इनका दाह संस्कार इनके अन्य क्रांतिकारी साथियों-भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव की समाधि स्थल पंजाब के हुसैनी वाला में किया गया .

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