डेटा साइंसेस का ट्रेंडसेटर

डेटा साइंसेस का ट्रेंडसेटर

इंजीनियरिंग और एमबीए की डिग्री लेने वाले इस युवा को कभी यह ख्याल नहीं आया था कि वह एक दिन एंटरप्रेन्योर बनेगा। यह बात अलग है कि पढ़ाई पूरी करने और कुछ सालों तक कारपोरेट सेक्टर में नौकरी करने के बाद धीरज राजाराम ने डाटा क्रंचिंग का एक सफल बिजनेस म्यू सिग्मा स्थापित किया। जिसके क्लाइंट्स में आज 140 फॉर्च्यून 500 कंपनियां शामिल है और हर 3 महीनों में 10 कंपनियां और शामिल हो रही हैं।

औचित्य : बिग डाटा एनालिटिक्स के प्रतिस्पर्धी बिजनेस में लगातार ऊंचाइयों की ओर बढ़ता भारत का पहला स्टार्टअप। मल्टी मिलियन डॉलर कंपनी का मुकाम हासिल करने के साथ-साथ यह दुनिया की शीर्ष बिग डाटा कंपनियों में शुमार हो चुकी है।



अपने दादा-दादी के पास पले-बढ़े धीरज राजाराम ने चेन्नई की प्रतिष्ठित अन्ना यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। अलग-अलग तरह का खाना बनाने का शौक रखने वाले धीरज, कॉलेज के दिनों का एक किस्सा याद करते हुए बताते हैं कि एक दिन जब प्रोफेसर ने मुझसे पूछा कि अगर तुम इंजीनियर ना बन सके तो क्या बनोगे, तो मैंने तपाक से जवाब दिया था कि सेफ बनना चाहूंगा। इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी करने के बाद धीरज ने यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो से एमबीए की पढ़ाई के दौरान एंटरप्रेन्योरशिप के बारे में उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था। पढ़ाई पूरी हुई तो उन्होंने अमेरिका में स्ट्रैटेजी कंसलटेंट के तौर पर बूज एलन हैमिल्टन कंपनी में और फिर प्राइस वाटर हाउस कूपर्स में नौकरी की। नौकरी के दौरान धीरज ने महसूस किया है कि यह रोजमर्रा के बिजनेस में मिलने वाली जानकारी में से जरूरी और गैर जरूरी जानकारी को अलग करने की बहुत आवश्यकता है। इसी जरूरत को धीरज ने एंटरप्रेन्योरशिप का आईडिया बनाया और करीब 7 साल के अपने कारपोरेट करीयर के बाद उन्होंने अपना बिजनेस स्थापित करने का मन बना लिया। 7 साल की अपनी नौकरी के अनुभव के साथ 2004 में उन्होंने अपनी कंपनी म्यू सिग्मा की स्थापना की।

छोटे आईडिया से मिलियन डॉलर कंपनी

एक छोटे से आईडिया के साथ शुरू हुई म्यू सिग्मा अपनी लॉन्चिंग के बाद से ही बिग डेटा इंडस्ट्री में सफलता का परचम फहराती आ रही है। दुनिया के कोने-कोने से रिटेलर, ड्रगमेकर, मीडिया, टेलीकॉम, फाइनेंसियल सर्विसेस जैसे अलग-अलग सेक्टर की करीब 140 फॉर्च्यून 500 कंपनियां म्यू सिग्मा की क्लाइंट है। वर्तमान में म्यू सिग्मा के ऑफिस शिकागो, बेंगलुरु और लंदन में स्थित है। जहां अमेरिका, यूरोप, भारत और ऑस्ट्रेलिया से आए करीब 35 सौ कर्मचारी काम कर रहे हैं। कंपनी बिग डाटा एनालिसिस की मदद से कस्टमर्स को अलग-अलग तरह के डाटा को समझ कर छुपे हुए पैटर्न्स, अज्ञात कोरिलेशंस और अन्य उपयोगी जानकारी को समझने में मदद करती है। जो उनका रेवेन्यू बढ़ाने में मदद साबित हो सके। म्यू सिग्मा भारत का पहला स्टार्टअप है जो बिग डेटा एनालिटिक्स के प्रतिस्पर्धी बिजनेस में लगातार ऊंचाइयों की ओर बढ़ता स्केल हासिल कर पाया है। अपने क्लाइंट की सूची में माइक्रोसॉफ्ट, डेल, आईबीम, पिफाइजर, वॉलमार्ट, मैकडॉनल्ड्स, अब्बोट और कुरियर जैसे कस्टमर्स को शामिल कर चुकी है। इस कंपनी का अनुभव है कि मौजूदा वित्त वर्ष में कंपनी का रेवेन्यू 1500 करोड रूपए के आंकड़े को छू जाएगा।

फंडिंग नहीं बचत से की शुरुआत

धीरज ने यह तय कर लिया था कि कंपनी की शुरुआत के लिए वे किसी फंडिंग की वजाय अपनी जमा पूंजी का इस्तेमाल करेंगे। धीरज ने अपने एंटरप्रेन्योरशिप के आईडिया के बारे में अपनी पत्नी से बात की। उन्होंने यह भी बताया कि यह बहुत आसान नहीं होगा क्योंकि कंपनी शुरू करने के लिए उन्हें अपनी सुरक्षित नौकरी ही छोड़नी पड़ेगी और शुरुआती पूंजी, अब तक की अपनी बचत और घर बेचकर उठानी पड़ेगी। यह सुनकर धीरज की पत्नी ने हार नहीं मानी और कंपनी की नींव रखने में अपना पूरा सहयोग दिया। उन्होंने अपना घर बेच दिया और एक बेडरूम के अपार्टमेंट में शिफ्ट हो गए। इस तरह धीरज ने 2 लाख अमेरिकी डॉलर के निवेश के साथ 2005 में कंपनी की स्थापना की और मैथ्स में अपनी खास दिलचस्पी के चलते कंपनी का नाम ग्रीक भाषा के गणितीय चिन्हों म्यू और सिग्मा के नाम 'म्यू सिग्मा' रखा।

हायरिंग और कंपटीशन की चुनौती

शुरुआती 9 महीनों तक धीरज ने अकेले दम पर यह कंपनी संचालित की क्योंकि उस दौरान कर्मचारियों को हायर करना उनके लिए सबसे बड़ा चैलेंज था। इसी से जुड़े एक अनुभव के बारे में धीरज बताते हैं कि एक कर्मचारी को नियुक्त करने के लिए तो उन्हें उसकी मां को राजी करना पड़ा था। लेकिन जब कस्टमर्स मिलने का सिलसिला शुरु हुआ तो लोगों का नजरिया हमारे प्रति बदलने लगा। दूसरी बड़ी चुनौती तब सामने आई जब कंपनी को बाजार में पहले से मौजूद आईबीएम और एस्सेंच्योर जैसी बड़ी कंपनियों से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा। धीरज ने इससे घबराकर मैदान छोड़ने की वजाय ऐसी साइंटिफिक कार्य प्रणाली अपनाने का मन बनाया जो इन कंपनियों से अलग हो। इन कंपनियों में प्रोग्रामिंग और बिजनेस एनालिसिस का काम अलग-अलग लोग कर रहे थे। धीरज ने इसी काम को समग्र तरीके से करने का निर्णय लिया और इसके लिए ऐसे लोगों को नियुक्त किया जो एप्लाइड मैथमैटेसियन के साथ-साथ प्रोफेशनल एनालिस्ट और प्रोग्रामर भी हो और उन्हें डिसीजन साइंटिस्ट का नाम दिया।

रचनात्मक है कंपनी की ऑपरेटिंग फिलॉस्फी

डिसीजन साइसेंज का भारतीय अध्यात्मिक से कोई संबंध नहीं है, लेकिन रचनात्मकता में रुचि रखने वाले एंटरप्रेन्योर का मानना है कि सृजन, संरक्षण और विनाश किसी भी विकास की बुनियादी आवश्यकता होती है। यही वजह है कि उन्होंने इसे अपनी कंपनी की ऑपरेटिंग फिलॉस्फी का आधार बनाया। धीरज ने अपने कर्मचारियों को 3 टिमों में बांटा है - पहला है ब्रह्म कुटुंब जो सृजनात्मक कार्य देखता है, दूसरा है विष्णु कुटुंब जो संरक्षण से जुड़े कानून पूरे करता है और तीसरा है शिव कुटुंब जो अतीत को त्यागने या विनाश करने का काम देखता है।

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