रफ्तार के साथ रोड पर दौड़ 'अभी बस' का आईडिया

रफ्तार के साथ रोड पर दौड़ 'अभी बस' का आईडिया

बस का टिकट ना मिलने पर घर न जा पाने का मलाल, घर गए तो बस टिकट के लिए मारा-मारी। इसका अनुभव आमतौर पर विद्यार्थी जीवन में सभी छात्रों को होता है। पर इस समस्या को समझना और उसका हल निकालने के लिए प्रयास करना ऐसी सोच सभी युवाओं में नहीं देखी जाती। आंध्र प्रदेश के सुधाकर इस दृष्टि से अलग सोच रखने वाले विद्यार्थियों की फेहरिस्त में शामिल है। उन्होंने वर्ष 2007 में एक बस टिकट की ऑनलाइन बुकिंग कराने की सुविधा की ओर कदम बढ़ाया और अपने सफल प्रयास के चलते आज वो एक एंटरप्रेन्योर के रूप में युवाओं के बीच जाने जाते हैं।

कंपनी : अभी बस
औचित्य : घर बैठे किसी एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए टिकेट मुहैय्या करवाना। 

सुधाकर रेड्डी चिर्रा का जन्म आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में हुआ था। यहीं से अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद सुधाकर ने 2005 में चेन्नई के आरके इंजीनियरिंग कॉलेज में इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में दाखिला लिया। घर से कॉलेज की दूरी काफी ज्यादा होने की वजह से सुधाकर सिर्फ सप्ताह के अंत पर ही घर आया करते थे। उस समय भी सुधाकर को बस का टिकट लेने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता था, क्योंकि सप्ताह के अंत में अधिकतर विद्यार्थियों को अपने घर जाना होता था। जिसकी वजह से टिकट की मांग बहुत ज्यादा बढ़ जाती थी। सुधाकर इस समस्या से काफी परेशान थे और कोई हल निकालना चाहते थे। तभी से इस क्षेत्र में कुछ अलग करने के बारे में उन्होंने सोचना शुरु कर दिया। इसी तलाश ने सुधाकर को एक नए बिजनेस का आईडिया दिया। आसानी से बस टिकट बुक करवाने की सुविधा के विचार को वह व्यवसाय में तब्दील करना चाहते थे।

सोच विचार कर उठाया कदम

सुधाकर ने तय किया की पढ़ाई पूरी होने के बाद अपने इस आईडिया को एक मूर्त रूप देंगे। अपने इस उद्यम को स्थापित करने में सुधाकर ने कोई जल्दबाजी नहीं की। उन्होंने अपने परिवार और दोस्तों की सलाह ली। सुधाकर के पिता भी बिजनेस क्षेत्र से संबंध रखते हैं, इसलिए उन्होंने सुधाकर को अपना पूरा समर्थन दिया। साथ ही यह राय भी दी कि अपना बिजनेस स्थापित करने से पहले काम का कुछ अनुभव होना काफी फायदेमंद होता है।

निवेश के साथ मिला अपनों का साथ

पिता की सलाह को मानते हुए सुधाकर ने जी इ टेक्नोलॉजी में अपने लिए एक नौकरी तलाश ली। 18 महीनों तक इस कंपनी में काम करते हुए सुधाकर ने अपने वेतन से 5 लाख रुपए की बचत की। साथ ही अपने माता-पिता का विश्वास भी प्राप्त किया। सुधाकर में एंटरप्रिन्योर बनने की लगन को देखकर माता पिता ने अपनी बचत से 10 लाख रुपए उसे देने का फैसला किया। कुल 15 लाख रुपए की पूंजी के साथ अपने बस टिकट बुकिंग से जुड़े बिजनेस प्लान में जान फूंकने के लिए सुधाकर ने कमर कस ली और 2006 में अपनी नौकरी छोड़ दी। शुरूआती पूंजी का एक बड़ा हिस्सा (लगभग 8 लाख रुपए) टिकट बुकिंग सॉफ्टवेयर के डेवलपमेंट में खर्च किया। फिर सुधाकर ने हैदराबाद में ऑफिस के लिए जगह किराए पर ली। जिसकी साज-सज्जा में कुछ लाख रुपए और खर्च हुए। आखिरकार सुधाकर के सपने ने मूर्त रूप लिया और सितंबर, 2007 में 'अभी बस सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड' की नीव रखी गई।

शुरुआत में नहीं बिके टिकट

शुरुआती दौर की मुश्किलों से सुधाकर अपरिचित नहीं थे। उन्हें पता था की चुनौतियों का सामना करना होगा, क्योंकि भारत में बस ट्रेवल मार्केट पूरी तरह से असंगठित था। उन्हें बस ऑपरेटर्स को 'अभी बस' के लिए अलग से टिकट कोटा रखने के लिए राजी करने में काफी दिक्कतें आई। शुरू के चार महीनों तक एक भी टिकट नहीं बिका। सुधाकर कहते हैं 'कई दफा कस्टमर शाम की टिकट बुक करवा कर भुगतान बोर्डिंग प्वाइंट पर करने के लिए कहते थे, लेकिन होता यह था कि वे टिकट के साथ वहां इंतजार में खड़े रह जाते थे और कोई आता ही नहीं था। इससे कंपनी पर नुकसान का खतरा बढ़ने लगा।'

पहली सफलता आज भी है याद

टिकट बुक कराना, फिर उसे लेने के लिए किसी का ना आना यह एक बड़ी समस्या थी। इससे निपटने के लिए सुधाकर ने दो एग्जक्यूटिव को नियुक्त किया। जनवरी, 2008 में सुधाकर को पहली सफलता मिली। उस समय कई बस ऑपरेटर अपनी बुकिंग को उनके सॉफ्टवेयर के साथ जोड़ने के लिए तैयार हो गए। नतीजा यह हुआ कि 'अभी बस' में अपने पहले ही साल में करीब 7 से 8 ऑपरेटर्स को जोड़ लिया और 7 लाख से ऊपर का टर्नओवर प्राप्त किया।

सॉफ्टवेयर ने दी कारोबार को ऊंचाई

बुकिंग के मोर्चे पर थोड़े ही वक्त में मिली इस कामयाबी का स्वाद चख लेने के बावजूद सुधाकर यह भूले नहीं थे की इसके पीछे सॉफ्टवेयर ने मुख्य भूमिका निभाई थी। इस सॉफ्टवेयर को और मजबूत बनाने की दृष्टि से सुधाकर ने कुछ टेक्नीशियन को नियुक्त किया। धीरे-धीरे वह अपनी टीम को विस्तार देते चले गए।

सफर को मिली रफ्तार

'अभी बस' के सफर में 2011-12 अगला मील का पत्थर साबित हुआ, जब कंपनी ने आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु जैसे तीन बड़े राज्यों के स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन के साथ अनुबंध साइन किया। इन तीनों डील्स का मूल्य 15-20 करोड़ रुपए था। फिलहाल 'अभी बस' में ऑनलाइन बस टिकट सोल्यूशंस प्रदान करने वाली देश की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी का रुतबा अपने नाम कर लिया है। कंपनी 10000 सीट्स की बुकिंग रोजाना करती है और अपने मोबाइल एप्लीकेशन के साथ कुल सीटों की 50 फीसदी बुकिंग मोबाइल फोन के जरिए करने का लक्ष्य लेकर चल रही है। 7 साल पहले 15 लाख रुपए की बुनियादी पुंजी से शुरू हुई 'अभी बस' आज 165 करोड रुपए की कंपनी बनकर उभरी है। जिसका सालाना टर्नओवर 250 करोड़ रुपए है। 'अभी बस डॉट कॉम' ने एक नए तरह का प्रयोग भी किया है। उन्होंने अनोखे 'बस मील' की शुरुआत की है, जिसके तहत जो यात्री हैदराबाद से अपनी यात्रा शुरू करेंगे, उन्हें यह मील दिया जाएगा। इसके लिए 'अभी बस' ने फूडीज से टाइअप किया है।

टेक्नोलॉजी ने बनाई पकड़

सुधाकर कहते हैं कि वर्तमान में इंडस्ट्री में टेक्नोप्रेन्योर्स का बूम है। ऐसे में भीड़ से अलग दिखने के लिए जरूरी है कि टेक्नोलॉजी पर अच्छी पकड़ हो। मार्केटिंग की बेहतरीन समझ हो और अपने निवेशकों से लेकर उपभोक्ताओं और कर्मचारियों तक सभी स्टॉक होल्डर्स को महत्व प्रदान करने की काबिलियत हो। अवसरों की निरंतर खोज और अपने सपने को पूरा करने के लिए रिस्क लेने की छमता भी बेहद अहम रोल अदा करती है।

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