कबाड़ को ही बना लिया अपना भविष्य

कबाड़ को ही बना लिया अपना भविष्य

कबाड़ को बेकार के रूप में सब ने देखा होगा, पर शायद अनुराग का नजरिया और कुछ अलग ही था। तभी तो उनके इरादों को नाम मिला 'द कबाड़ीवाला डॉट कॉम' का। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में घर-घर से कबाड़ लेने का जिम्मा उठाया अनुराग ने। इसके लिए शुरू में अस्थानीय कबाड़ियों की मदद ली, फिर एहसास हुआ कि खुद का स्टाफ रखना ज्यादा सहूलियत वाला होगा। आज भोपाल, ग्वालियर, इंदौर व दो अन्य शहरों में अनुराग असाटी और संदीप रघुवंशी अपने नेक इरादों के साथ एक अलग तरह का काम कर रहे हैं।

संस्थापक : अनुराग असाटी, संदीप रघुवंशी
औचित्य : घर में रखे बेकार चीजों यानी कबाड़ को ऑनलाइन खरीद फरोख्त करना 

अखबार, किताबें, साहित्य पढ़ने आदि का शौक अधिकतर व्यक्तियों को देखा जा सकता है। अखबार, मैगजीन आदि चीजें आपकी जिंदगी का हिस्सा तो होती है, पर जरूरत पूरी होने के बाद वह घर का कोना घेरने का भी काम करती हैं। ऐसे में यह चीजें कबाड़ का रूप लेती हैं। यह कबाड़ घर की खूबसूरती को बिगाड़ने में नकारात्मक भूमिका निभाने लगता है। उसे ठिकाने लगाने की जिम्मेदारी भी काफी कष्टप्रद हो जाती है। ऐसे में अगर इस कबाड़ को हटाने की जिम्मेदारी कोई और अपने कंधे पर ले तो आपकी परेशानी कम हो जाती है। इसी तरह की एक सामाजिक जिम्मेदारी का निर्वाह करने के लिए कुछ युवाओं ने मिल कर 'द कबाड़ीवाला डॉट कॉम' की शुरुआत की।

युवाओं ने उठाया भार

भोपाल शहर के कुछ युवा इंजीनियर ने कबाड़ की समस्या को खत्म करने के लिए इंटरनेट को ही हथियार बनाया। उन्होंने उसे ठिकाने लगाने के लिए ऑनलाइन पहल की शुरुआत की है। इस ऑनलाइन सोल्यूशंस का नाम है 'द कबाड़ीवाला डॉट कॉम'। इस वेबसाइट के जरिए लोग घर बैठे अपने घर ऑफिस आदि का कबाड़ बेच सकते हैं। इसकी शुरुआत करने का श्रेय जाता है अनुराग असाटी और संदीप रघुवंशी को।

यूं फिरी कबाड़ की किस्मत

अनुराग आईटी इंजीनियर हैं और भोपाल से ताल्लुक रखते हैं। वे पूरी दुनिया पर अपनी स्किल्स के माध्यम से प्रभाव दिखाना चाहते थे। वह दिन अचानक से उनकी जिंदगी में आया, जब उन्होंने अपने घर के अखबार हटाने के लिए कबाड़ी को घर बुलाया। तब से ही उनके दिमाग में इस काम को ऑनलाइन सर्विस में बदलने का ख्याल आया। अनुराग कहते हैं कि मैंने इस ओर आगे काम बढ़ाया। पर जब इसके बारे में विस्तार से सोचा, तब समझ आया कि आसान सा दिखने वाला यह काम असल में कितना जटिल है। इस प्रक्रिया में मुझे पता चला की यह सारा खेल वेस्ट मैनेजमेंट साइकिल से जुड़ा है। तब यह पता चला कि इस साइकिल में कबाड़ को घरों से हटाने के लिए कोई सुविधा है ही नहीं। यहीं पर एक गैप था, जिसे पूरा करने की जरूरत थी। तब मेरे मन में कबाड़ी वाला ऑनलाइन पोर्टल की शुरूआत करने के आइडिया ने जन्म लिया।

कर रहा है हर एक की मदद

'द कबाड़ीवाला डॉट कॉम' पर अपना कबाड़ बेचने के लिए ऑनलाइन स्लॉट बुक करवाना होता है। इस वेबसाइट से संबंधित लोग न सिर्फ आपका कबाड़ घर से ले जाते हैं बल्कि वे इसके लिए आपको पैसे भी देते हैं। अनुराग कहते हैं कि यह कोई आंदोलनकारी आईडिया नहीं था पर यह एक ऐसा विचार था जिस पर काम करने की बहुत जरूरत थी। इसमें मदद का हाथ बढ़ाया, उनके कॉलेज के प्रोफेसर कविंद रघुवंशी ने। वे इस ऑनलाइन सर्विस के सह संस्थापक और मेंटर भी हैं। प्रोफेसर रघुवंशी की मदद से अनुराग ने अपने आईडिया को बेहतर शेप दिया। साथ ही उन्होंने अनुराग को आर्थिक मदद भी दी। 'द कबाड़ीवाला डॉट कॉम' की शुरुआत 2013 में हुई। आज 'द कबाड़ीवाला डॉट कॉम' पांच शहरों में काम कर रहा है। इनमें प्रमुख हैं भोपाल, ग्वालियर, इंदौर। आने वाले कुछ महीनों में वे मुंबई दिल्ली और छत्तीसगढ़ में खुद को स्थापित करने की योजना बना रहे हैं।

मार्केटिंग के लिए अपनाए सभी तरीके

अपनी इस ऑनलाइन सर्विस को लोगों तक पहुंचाने के लिए अनुराग और संदीप ने सभी तरीकों का इस्तेमाल किया। इसके लिए उन्होंने मार्केटिंग के सभी कार्यों को अपनाया। इसकी पहुंच बढ़ाने के लिए होल्डिंग्स की मदद ली, पैंफलेट बांटे, जिससे लोगों में इसके प्रति जागरुकता लाई जा सके। फेसबुक के जरिए लोगों को इसके साथ जोड़ा, जिससे 'द कबाड़ीवाला डॉट कॉम' की ओर लोगों का खिंचाव बढ़े। आज इस ऑनलाइन सर्विस को शुरू हुए 1 वर्ष हो चुका है और अनुराग कहते हैं कि इस दौरान 10000 से ज्यादा लोगों ने वेबसाइट के माध्यम से उन्हें अपना कबाड़ दिया है।

कैसे करता है काम

'द कबाड़ीवाला डॉट कॉम' से इंटरनेट के साथ-साथ whatsapp पर भी जुड़ा जा सकता है। इस पर अपनी रिक्वेस्ट ऑनलाइन यह मैसेज के माध्यम से भेजी जाती है। ऑनलाइन कबाड़ीवाला उपभोक्ता के अनुसार दिए गए टाइम स्लॉट पर अपने एंप्लॉय को कबाड़ लेने के लिए भेजता है। कबाड़ के वजन के अनुसार उपभोक्ताओं को पैसे दिए जाते हैं। कबाड़ को इकट्ठा करने वाला व्यक्ति अपने साथ इलेक्ट्रॉनिक वेट मशीन ले जाता है, जिससे कबाड़ का सही से वजन हो सके। एक बार रिक्वेस्ट पूरी होने के बाद फीडबैक कॉल जरुर किया जाता है, जिससे उपभोक्ता की सटीक प्रतिक्रिया जानी जा सके। इसके बाद कबाड़ को अलग-अलग कर रिसाइकल के लिए भेज दिया जाता है।

छोटी टीम के बड़े कारनामे

अनुराग ने अपने काम की बदौलत 8 लोगों की टीम बना ली है। उनकी टीम में 8 डिलीवरी बॉय है। अनुराग कहते हैं कि वह अपना प्रभाव छोड़ना चाहते थे और जानते थे कि सभी जगहों पर वेस्ट मैनेजमेंट एक बड़ी समस्या है। भोपाल से ताल्लुक रखने के कारण यहां से अपने काम की शुरुआत करने की ठानी और इंटरनेट ने इन्हें इस काम को शुरू करने की ताकत दी। वे कहते हैं कि भारत में वेस्ट मैनेजमेंट की कम ही कंपनियां है। इस क्षेत्र में वेंचर बैक्ड एटेरो कंपनी, स्थापित फर्म्स में से एक है।

आगे फोकस करना है रिसाइकल पर

द कबाड़ीवाला डॉट कॉम के अनुराग असाटी कहते हैं, 'साल 2013 से लेकर अब तक लगभग 10000 लोग इस सुविधा का फायदा ले चुके हैं। इसके अलावा इंडस्ट्रीज हमारे मुख्य क्लाइंट है जो स्क्रैप हमें देते हैं। फिलहाल हम 20 से 30 परसेंट स्क्रैप को रिसाइकल कर रहे हैं। फ्यूचर में हमारा फोकस कबाड़ इकट्ठा करने के साथ उसके रीसाइक्लिंग पर होगा। '

औरों को देते हैं सीख

'जीवन में असफलताएं कभी कभी सफलता के मायने समझाती है। जब हार से सामना हुआ तब मन में सफल होने का जज्बा, और मजबूत हुआ। असफलता का डर दिलो-दिमाग से निकल गया और हार से जीतने की ललक मन में पैदा हुयी', यह कहना है अनुराग का। उन्हें जिंदगी में पहले हार मिली फिर उन्होंने अपनी कमजोरियों को काबिलियत और रचनात्मकता से दूर कर सफलता की सीढ़ियां चढ़ी। उन्होंने कबाड़ में ही भविष्य का जुगाड़ कर लिया।

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