जिंदगी बचाने के निशान पर चलने वाला समाजिक उद्यमी

जिंदगी बचाने के निशान पर चलने वाला समाजिक उद्यमी

सड़क दुर्घटना में खोए अपने कजिन के दुख में पीयूष तिवारी को सेव लाइफ फाउंडेशन की नीव रखने की प्रेरणा दी थी। उसके इस प्रयास को आज दुनिया भर में सराहा जा रहा है।



संस्थापक : पीयूष तिवारी

औचित्य : सड़क दुर्घटनाओं में घायलों की मदद के लिए वॉलिंटियर्स तैयार करना।


आंकड़े बताते हैं कि हिंदुस्तान में हर 4 मिनट में एक व्यक्ति की मृत्यु सड़क हादसों के कारण होती है और इसी वजह से इसे दुनिया की सड़क हादसों की राजधानी की शर्मनाक उपाधि भी दी गई है। ऐसे ही एक हादसे का शिकार हुआ 16 वर्षीय शिवम। स्कूल से लौटते वक्त एक कार ने उसे टक्कर मार दी। घायल शिवम सड़क पर 45 मिनट तक मौत से लड़ता रहा लेकिन मदद के लिए कोई नहीं आया और उसने वहीं दम तोड़ दिया। शिवम के पिता की पहले ही मृत्यु हो चुकी थी और उसका कजिन पीयूष तिवारी ही उसका गार्जियन था। इस घटना ने उसे झकझोर कर रख दिया था। वक़्त रहते मदद मिलने पर शिवम को बचाया जा सकता था। इस सच ने पीयूष के दुख को गुस्से में तब्दील कर दिया। उसका ध्यान देश में सड़क हादसों की बढ़ती संख्या और पीड़ित के लिए इमरजेंसी मेडिकल मदद की कमी पर गया। कुछ महीनों तक इस हादसे से उबरने का प्रयास करने के बाद, वर्ष 2008 में पीयूष ने महसूस किया कि इस समस्या का हल संस्थागत तरीके से निकाला जा सकता है। इसी विचार के साथ उन्होंने एक बायस्टैंडर मेडिकल केयर इंटरप्राइज सेव लाइफ फाउंडेशन (SLF) की स्थापना करने की ठान ली।

मदद का कारवां

अमेरिका की एक प्राइवेट इक्विटी फर्म कैलिब्रेटेड ग्रुप में मैनेजिंग डायरेक्टर के रूप में काम करते हुए 2008 में उन्होंने दिल्ली में एसएलएफ की नीव रखी। जिसका उद्देश्य आम नागरिकों और सरकारी तंत्र के साथ मिलकर सड़क हादसों में घायल होने वाले लोगों की मदद करना था। काम करते हुए पीयूष को यह समझ आया कि इमरजेंसी केयर घटनास्थल से ही शुरु होती है। साथ ही पुलिस और दूसरों की मदद करने की इच्छा रखने वाले लोग उनकी काफी हद तक सहायता कर सकते हैं। इसलिए उन्होंने ऐसे लोगों को जीवन रक्षक तकनीकों की ट्रेनिंग देनी शुरू की। एसएलएफ की औपचारिक शुरुआत फरवरी, 2009 में मात्र 50,000 की पूंजी से हुई थी। पियूष की खुशकिस्मती रही कि शुरुआत में उनकी कंपनी कैलिब्रेटेड ग्रुप ने उन्हें एसएलएफ ऑफिस के लिए स्पेश दिया। इससे पीयूष एक ही जगह पर अपना जॉब और वेंचर एक साथ संभाल पा रहे थे।

मिशन को मिली मंजिल

पीयूष ने दिल्ली पुलिस के साथ पार्टनरशिप की और करीब 3000 लोगों को प्रशिक्षण दिया। इसके लिए उन्होंने एम्स ट्रॉमा सेंटर और अपोलो हॉस्पिटल को भी साथ देने के लिए रजामंद कर लिया। जिन्होंने एसएलएफ को सुविधाओं के साथ साथ ट्रेनर्स भी मुहैया करवाए। इन्हीं की मदद से एसएलएफ नि:शुल्क ट्रेनिंग करवाने में सफल हुआ। पहले वर्ष का टर्नओवर मात्र 45,000 रुपए रहा। फिर एसएलएफ को अप्रैल, 2010 में रोलेक्स अवार्ड फॉर एंटरप्राइज से सम्मानित किया गया। जिससे पीयूष को आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली। एसएलएफ अब उस मुकाम पर पहुंच चुका था, जहां वह लोगों की जिंदगी बचाने में सफलता हासिल कर रहा था। पियूष को समझ आ चुका था कि थोड़ी और मेहनत के साथ इसे राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी बनाया जा सकता है। मई, 2011 में पियूष ने अपनी जॉब छोड़कर, अपना पूरा ध्यान एसएलएफ पर लगाने का फैसला ले लिया। तीन ही महीनों में पियूष अपने ऑफिस स्पेस से भीकाजी कामा प्लेस के ऑफिस में शिफ्ट हो गए। पियूष बताते हैं कि वह वर्ष में करीब 50 से ज्यादा ट्रेनिंग सेशन आयोजित करते हैं और अब तक 6000 से ज्यादा लोगों को प्रशिक्षित कर चुके है। जिसमें दिल्ली और मुंबई के एक हजार से अधिक कम्युनिटी वालंटियर्स शामिल हैं। बड़ी बात यह है कि इनकी मदद से अब तक 1 लाख 75 हजार घायलों को सहायता मिल चुकी है। दिल्ली और अब मुंबई में अपने ऑफिस में पीयूष करीब 10 फुल टाइम वर्कर्स को साथ लेकर साठ लाख रुपए के टर्न ओवर के साथ अपने मिशन पर आगे बढ़ रहे हैं।

No comments:

Post a Comment