रिकवरी बिजनेस की साहसी महिला उद्यमी

रिकवरी बिजनेस की साहसी महिला उद्यमी

किसी पारंपरिक नौकरी के वजाय मंजू भाटिया ने रिकवरी फील्ड में खुद को आजमाया। कड़ी चुनौतियों का सामना करते हुए कुछ ही सालों में इस सामान्य लड़की ने पुरुष दबदबे वाले क्षेत्र में न केवल करोड़ों का बिजनेस खड़ा किया, बल्कि साहस की अद्भुत मिसाल भी कायम की।

 
कंपनी : अधिकृत जब्ती एवं वसूली
नाम : मंजू भाटिया (जॉइंट एमडी)
औचित्य :
महिला रिकवरी एजेंटों द्वारा संचालित यह कंपनी देशभर में राष्ट्रीयकृत बैंकों को लोन वापसी में मदद करती है।

कई सालों पहले मध्य प्रदेश के एक वरिष्ठ मंत्री द्वारा लिए गए लोन का भुगतान जब बैंक को नहीं मिला तो बैंक में पैसा वापसी का काम एक रिकवरी फर्म को दिया। कंपनी के एक एजेंट ने अपॉइंटमेंट लेकर मंत्री महोदय से मुलाकात की और विनम्रता पूर्वक उन्हें लोन के बारे में याद दिलाया। मंत्री ने तुरंत अपने अकाउंटेंट को फोन किया और उसी दिन बकाया राशि का भुगतान कर दिया। दिलचस्प यह है कि पैसा वसूली की यह एजेंट एक 18-19 साल की लड़की मंजू भाटिया थी। आम तौर पर वसूली शब्द धमकाकर पैसा वसूलते ताकतवर पुरुषों की याद दिलाता है, लेकिन रिकवरी एजेंट के रूप में मंजू वसूली को नए ही रुप में परिभाषित कर रही थी। पुरुषों का अधिकार क्षेत्र समझे जाने वाले रिकवरी फील्ड में इस साधारण लड़की की एंट्री चौकाने वाली थी, लेकिन इससे भी ज्यादा आश्चर्यजनक था कि किस तरह कुछ सालों बाद उसने इस पैसे को नई ऊंचाइयों दी।

पहली चुनौती

16 वर्षीय मंजू ने इंदौर में एक फार्मा कंपनी में रिसेप्शनिस्ट के रूप में काम शुरु किया। 2003 में 12वीं की परीक्षा के बाद उसने एकाउंट्स और कच्चे माल की ट्रेडिंग का काम सीख लिया। 2 साल में ही वह जान गई थी कि निर्यात लाइसेंस किस तरह लिया जाता है और ग्राहक कैसे बनाए जाते हैं। इस बीच मंजू ने बीए व बैचलर ऑफ लॉ की पढ़ाई की। इसी दौरान उसके बॉस और परिवारिक दोस्त पराग शाह ने मंजू से अपनी लोन रिकवरी कंपनी में मदद की गुजारिश की। वसूली नाम कि इस कंपनी की स्थापना पराग ने 1998 में की थी। इसी असाइनमेंट के तहत मंजू ने मंत्री से पैसा वापस निकलवाया था। यह काम करते हुए उसे लगा कि अक्सर बैंक व कस्टमर्स के बीच संवाद की कमी के चलते भी गलतफहमियां पनपती हैं और बेहतर संवाद का काम महिलाएं बखूबी कर सकती हैं। यही सोचते हुए मंजू ने इसी काम को फुल टाइम प्रोफेशन बनाना तय कर लिया। दूसरी ओर पराग मंजू को जीवन साथी के रूप में चुन चुके थे, इसलिए उन्होंने वसूली की जिम्मेदारी उसे सौंप दी।

महिलाओं को बनाया रिकवरी एजेंट

अक्सर पुरुष रिकवरी एजेंट की छवि आक्रामक होती है। जो मार पिटाई से पैसा वसूलने का प्रयास करते हैं। मंजू को लगा की वसूली के लिए महिलाएं उपयुक्त हैं, इसलिए उसने सभी उम्र की महिलाओं को साथ लेकर टीम बनाना शुरु किया। यह आसान सफर नहीं था। महिलाओं की नियुक्ति एक बड़ी चुनौती थी। इस अवधारणा को तोड़ पाना भी कठिन था कि पुरुष ही अच्छे रिकवरी एजेंट साबित होते हैं। सारी परेशानियों के बावजूद मंजू ने 2003 में 3 एजेंट से काम शुरू किया।

इंदौर से मुंबई

उन दिनों बैंकों को रिकवरी का काम बाहरी एजेंसियों को सौंपने की अनुमति नहीं थी। साथ ही उन्हें कंपनी की महिला कर्मचारियों की क्षमताओं पर भी शक था। जब भी मंजू व पराग बैंक अधिकारियों से मिलते तो उनसे पूछा जाता - क्या आपके पास वसूली के लिए ताकतवर पुरुष हैं? मंजू बताती हैं, हमें यह प्रमाणित करने में कई साल लगे कि महिलाएं इस काम को बेहतर ढंग से कर सकती हैं। साल 2006 वसूली के लिए एक टर्निंग पॉइंट था। सिक्योरिटाइजेशन ऑफ एसेट्स एंड रिकंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनेंसियल एसेट्स एंड इंफोर्समेंट ऑफ़ सिक्योरिटी एक्ट के आने के बाद रिकवरी सेवाओं को मजबूती मिली थी। इस एक्ट के आने के बाद मुम्बई के कई बैंकों से उन्हें निमंत्रण मिला। 2007 में कंपनी को मुंबई शिफ्ट किया गया।
हिंसक घटनाओं से सामना
एक हादसे के बारे में बताती हुई मंजू कहती हैं, औरंगाबाद के नजदीक एक फैक्ट्री में वर्कर्स ने महिला एजेंटों को वेयरहाउस में बंद कर दिया था। यहां तक कि एक बार तो कलेक्शन के लिए गई वसूली टीम पर कर्जदारों ने एसिड फेंकने की कोशिश भी की। यही वजह है कि मंजू ने रिकवरी टीम को पुलिस सुरक्षा और वीडियोग्राफर्स के साथ भेजना शुरू किया।

भरोसे से जीता दिल

मुश्किल देनदारों के बारे में बताते हुए मंजू कहती हैं, एक बार ठाणे में एक फैक्टरी पर 70 करोड़ का कर्ज था जिसमें मजदूरों के वेतन का पैसा शामिल नहीं था। हमें फैक्ट्री को नीलाम करना था। जब हम वहां पहुंचे तो देनदार ने 125 मजदूरों के साथ दरवाजा बंद कर लिया। मजदूर हमें आगे बढ़ने से रोक रहे थे। कानून के अनुसार पहला क्लेम मजदूरों की देय राशि का था। हमने उन्हें बैंक पर भरोसे का आश्वासन दिया। अंततः हम उन्हें यकीन दिलाने और पैसा वापसी में कामयाब रहे।

काम का तरीका

रिकवरी एजेंट लोन राशि हासिल करने या देनदार की प्रॉपर्टी को सील करके ऑक्शन का काम करते हैं। एक टीम में 8 से 10 लड़कियां, संबंधित बैंक अधिकारी व पुलिस स्टाफ होता है। बैंक से निर्देश मिलते ही महिलाओं की टीम देनदार के घर पहुंचती है। विनम्रतापूर्वक कर्ज ना चुकाने की वजह पूछने के बाद रिकवरी की प्रक्रिया शुरु होती है। कर्मचारियों के प्रशिक्षण के बारे में बताते हुए मंजू कहती हैं, हमारी ज्यादातर कर्मचारी महिलाएं हैं। जिन्हें हम कर्जदारों से सम्मानजनक तरीके से पेश आना सिखाते हैं।

यकीन से सब संभव है

कड़ी मेहनत से मंजू ने कंपनी को करोड़ों का मुकाम दिया। मंजू के शब्दों में इस सफलता की नीव खुद पर भरोसा है। वे कहती हैं कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता। बस आपमें कुछ करने की इच्छा होनी चाहिए।

6 करोड का मुकाम

2003 में तीन एजेंट्स के साथ वसूली के स्थापित होने का सफर शुरू हुआ था। लगभग 11 साल पहले जब कंपनी में 8 लोगों का स्टाफ था तो उसकी मासिक आय ₹25000 थी। पिछले साल कंपनी 6 करोड़ के रेवेन्यू को पार कर चुकी है और अलग-अलग शहरों में इसके 250 से ज्यादा एजेंट हैं। वर्तमान में कंपनी की 25 से ज्यादा शाखाएं हैं, जो 20 राष्ट्रीयकृत बैंकों के साथ 5000 करोड़ की लागत की रिकवरी कर रही है।

1 comment:

  1. मैं कैसे एक रिकवरी एजेंट बन सकता हूँ। मार्गदर्शन करें।

    ReplyDelete