काम कर अनुभव लिया, फिर बनायींअपनी कंपनी
अपूर्वा ने जब फॉरेंसिक अकाउंटिंग के क्षेत्र में शुरुआत की थी तो उन्हें इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी। डॉक्टर माता-पिता की बेटी कुछ अलग करना चाहती थी, इसलिए उन्होंने काम कर पहले इसके अलग-अलग पहलुओं को जाना। आज उनका स्टार्टअप बड़ी कंपनियों के फर्जीवाड़े पकड़ने में देश का प्रमुख नाम है।
कंपनी : रिस्कप्रो मैनेजमेंट कंसल्टिंग
संस्थापक : अपूर्वा जोशी
औचित्य : फॉरेंसिक अकाउंटिंग द्वारा बड़ी कंपनियों के फर्जीवाड़े पकड़ना।
महाराष्ट्र के शोलापुर शहर में पैदा हुयी अपूर्वा जोशी का पूरा परिवार मेडिकल फील्ड से जुड़ा हुआ है, लेकिन उनकी मां चाहती थी कि अपूर्वा कुछ नया करें। इसी चलते दसवीं कक्षा में अच्छे मार्क्स आने के बावजूद उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई नहीं करने का फैसला किया। उन्होंने चार्टर्ड अकाउंटेंट को लक्ष्य बनाकर कॉमर्स स्ट्रीम में दाखिला लिया।
कुछ अलग करने के लिए की फॉरेंसिक अकाउंटिंग की पढ़ाई
सोलापुर में 12वीं की पढ़ाई करने के बाद अपूर्वा आर्टिकलशिप के लिए पुणे गए। सीए फर्म की तलाश करते हुए उन्हें एक फॉरेंसिक अकाउंटेंट के बारे में पता चला। दिलचस्पी जगी तो वे कंपनी के ऑफिस जा पहुंची। यह एक स्टार्टअप कंपनी थी इसलिए आर्टिकलशिप के साथ अपूर्वा को सीधे काम पर लगा दिया गया। उनका पहला काम एक बड़ी रिटेल चेन का फ्रॉड रिस्क असेसमेंट करना था। फ्रॉड का नाम सुनकर वो घबरा गई। लेकिन मां के समझाने के बाद समझ गए कि वह यह भी कर सकती हैं।
काम के दौरान मिला आईडिया
पहले असाइनमेंट में उन्होंने इस काम की बारीकियां सीखी। उन्होंने काम करते हुए देखा कि कैसे कंपनियां क्वार्टर नतीजों और स्टॉक की कीमतों को बढ़ाने के लिए कई बार आंकड़ों से छेड़खानी करती हैं। उन्हें एक नया और बड़े प्रोजेक्ट में काम करने का मौका मिला। इसमें उन्हें बीएसई और एनएसई मेल लिस्टेड 6000 कंपनी की बैलेंस शीट जांचने का मौका मिला। यह करते हुए उन्हें पता चला कि 1200 से ज्यादा कंपनियां किसी न किसी प्रकार से फ्रॉड में शामिल थी। यह रिपोर्ट वर्ष 2008 में पेपर में प्रकाशित हुई और अपूर्वा का नाम चीफ रिसर्च ऑफिसर के तौर पर आया। अपूर्वा और उनके बॉस की खूब तारीफ हुई। अपूर्वा को अपना रोल मॉडल मिल गया। उन्होंने तय कर लिया कि वह भी अपने बॉस की तरह बनेंगी।
आसान नहीं था असाइनमेंट हासिल करना
अपूर्वा ने तय किया कि वो अब इस पेशे से जुड़े तकनीकी पहलुओं को समझेंगी। उन्होंने इसके बारे है उन्होंने इसके हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर टूल्स के बारे में जानना शुरू किया। 2011 में उन्होंने आर्टिकलशिप पूरी कर ली। अब उन्हें CA का फाइनल एग्जाम देना था। इसके साथ ही अपूर्वा ने अपने वेंचर पर काम करने का फैसला किया। उन्होंने सोचा कि फ्रॉड पर एक न्यूज पोर्टल बनाना चाहिए। उन्होंने फ्रॉडएक्सप्रेस की शुरुआत की। नौकरी छोड़कर वह अब अकेले काम कर रही थी, लेकिन फर्म छोड़ने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि असाइनमेंट हासिल करना इतना आसान नहीं है। अपूर्वा को अब एक टीम बनाने की जरूरत महसूस हुई, क्योंकि वो ये काम अकेले नहीं कर सकती थी। लेकिन उनके पास फंड की कमी थी। ऐसे समय में उनकी सहेली मानसी पहली शख्स थी जिन्होंने उन्हें जॉइन किया। उन्होंने एक डिजिटल मीडिया वेंचर का प्लान बनाया, लेकिन उन्हें कोई फंडिंग नहीं मिली।
मां की मौत के बाद लौटना पड़ा सोलापुर
2011 में निजी कारणों से वह सोलापुर वापस शिफ्ट हो गई। सोलापुर में एक बायोटेक कंपनी में असाइनमेंट मिल गया। अपूर्वा ने एक एजेंसी की मदद से प्रोजेक्ट टीम बना ली। उन्हें लगा कि इस क्षेत्र के बारे में जानकारी फैलाई जाएं। फॉरेंसिक अकाउंट के लिए वह एक हैंड बुक पर काम कर रही थी। 2012 में उन्होंने इसे पब्लिश किया। अब उनके पास पैसे आने लगे। जल्द ही फ्रॉडएक्सप्रेस के बैनर के तले वो और किताबें लेकर आने लगी।
पुरानी कंपनी को पसंद आया उनका प्लान, खुल गए कामयाबी के दरवाजे
अब वह बड़े स्तर पर काम करना चाहती थी। अपूर्वा ने अपनी दोस्त मानसी को एक बिजनेस प्लान बनाने को कहा। अपूर्वा ने अपनी पुरानी कंपनी के डायरेक्टर को प्लान दिखाया और उन्हें कंपनी बोर्ड में जगह मिल गई। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अब वह सफल रूप से कई बड़े प्रोजेक्ट कर रही है और फ्रॉडएक्सप्रेस कई बड़े प्रोजेक्ट का हिस्सा है।
अपना वेंचर्स शुरू करने के बाद अपूर्वा को लगा कि असाइनमेंट हासिल करना इतना आसान नहीं है। उन्हें एक टीम बनाने की जरूरत महसूस हुई क्योंकि वह यह काम अकेले नहीं कर सकती थी लेकिन उनके पास फंड की कमी थी।
ग्लोबल ब्रांड बनने की चाहत
अपूर्वा कहती हैं कि देश में फॉरेंसिक अकाउंटिंग के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। नवंबर, 2012 में सोलापुर में रहते हुए उन्होंने करीब 4000 पन्नों का स्टडी मटेरियल तैयार किया। फिर यूनिवर्सिटी अधिकारियों को बड़ी मुश्किल से मना कर उन्होंने छात्रों के बीच इसे बटवाया। ताकि लोग इससे परिचित हो सके। हालांकि छोटे स्तर पर ऐसे प्रयासों से उन्हें संतुष्टि नहीं मिली। आने वाले समय में वह फॉरेंसिक अकाउंटिंग के लिए अपना एक इंस्टिट्यूट खोलना चाहती हैं। देश-विदेश में काम का विस्तार कर वे अपनी ग्लोबल पहचान बनाना चाहती हैं।
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