ऑन लाइन ट्रेडिंग ने दिया 4000 करोड़ का टर्नओवर

ऑन लाइन ट्रेडिंग ने दिया 4000 करोड़ का टर्नओवर


रवि और उनके भाई रघु का ट्रेडिंग की दुनिया में पहला वेंचर आर्थिक मंदी की भेंट चढ़ा तो भारत आकर उन्होंने बिज़नेस की दूसरी पारी की शुरुआत की। यहां ऑनलाइन स्टॉक ट्रेडिंग फॉर्म शुरू कर उन्होंने असंभव से दिखने वाले चार हजार करोड़ के डेली टर्नओवर का मुकाम सिर्फ 2 साल में हासिल कर लिया।



औचित्य : ऑनलाइन ट्रेडिंग में होने वाली परेशानियों और निवेश और ट्रेडिंग की लागत को कम करने के लिए बनाया ऑनलाइन स्टॉक ट्रेडिंग प्लेटफार्म।


रघु कुमार उनके बड़े भाई रवि कुमार और श्रीनिवास विश्वनाथ ने 2012 में डिस्काउंट ब्रोकिंग हाउस की नींव रखी। कंपनी के सभी को-फाउंडर्स की पृष्ठभूमि फाइनेंस और टेक्नोलॉजी का एक सही एक मिश्रण है। रघु यूएस में पले-बढ़े और एक्चुरियल साइंस व फाइनेंस जैसे विषयों के साथ वही पर यूनिवर्सिटी ऑफ इलिनोइस (अरबाना-शैंपेन) से 2006 में ग्रेजुएशन की। पढ़ाई पूरी होने के बाद रघु ने फाइनेंस टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में काम करना शुरू किया। वही रघु के बड़े भाई रवि कुमार टेक्नोलॉजी क्षेत्र के कई दिग्गजों के साथ काम कर चुके थे और अब ट्रेडिंग में अपने हुनर को तरास रहे थे। अपने शौक के चलते रवि ने पेनी स्टॉक्स में ट्रेडिंग महज 17 साल की उम्र में ही शुरु कर दी थी। आगे चलकर उन्होंने एक ब्रोकिंग फर्म भी ज्वाइन कर ली। यहां उनकी दिलचस्पी फॉरेक्स मार्केट में पैदा हुई। इसी बीच ग्रेजुएशन पूरी होने के बाद रघु ने एल्गोरिदम लिखना शुरू किया जिन्हें कोड में बदलने का काम रवि किया करते थे। इससे दोनों को सफलतापूर्वक ट्रेड करने में काफी सहूलियत हुई। अपने इस कामयाबी से वे काफी प्रोत्साहित हुए और उन्होंने ट्रेडिंग में अपनी पार्टनरशिप को स्थापित करने का फैसला ले लिया।

मंदी बनी रुकावट

2 साल तक दोनों ने मिलकर कड़ी मेहनत की और इसी का नतीजा था कि उन्होंने इतने कम वक्त में 20 मिलियन डॉलर कमा लिए। उनकी इस तरक्की ने उन्हें हेज फंड की शुरुआत करने का आत्मविश्वास भी दिया। अपनी दिलचस्पी के इस काम को आगे बढ़ाते हुए दोनों ने एक हेज फंड शुरू किया लेकिन 2008 में आई आर्थिक मंदी ने उन्हें बुरी तरह प्रभावित किया और उनकी कोई एल्गोरिदम उन्हें यूएस में कामयाब ट्रेडिंग कर पाने में मदद नहीं कर पाए। इससे मजबूर होकर उन्होंने अपना काम बंद कर ब्रेक लेने का फैसला किया।

भारत में दिखी बिजनेस की संभावना

इस ब्रेक के दौरान दोनों भाइयों ने देखा कि  ट्रेडिंग के लिए भारतीय बाजार तैयार हो रहा है यहां डायरेक्ट मार्केट एक्सेस की चर्चाएं की जाने लगी थी इसके तहत संस्थागत निवेशकों को सीधे मार्केट का एक्सेस उपलब्ध करवाया जाता है जिससे ब्रोकर की भूमिका न्यूनतम हो जाती है इस स्थिति को देखते हुए रवि और रघु को भारतीय बाजार में अच्छी संभावनाएं नजर आए लेकिन उन्होंने महसूस किया कि बाजार में प्रवेश करने algorithmic (एल्गोरिदमिक) के लिए भारत को गहराई से समझना जरूरी है इसी विचार के साथ दोनों ने भारत में रहने का फैसला कर लिया। देश लौटने के बाद वह गाजियाबाद अपने एक दोस्त के साथ रहने लगे। यही उनकी मुलाकात न्यूयॉर्क स्थित सिटी बैंक में कंप्यूटर नेटवर्किंग की जॉब कर रहे श्रीनिवास से हुई। रवि और रघु की योजना से प्रोत्साहित होकर श्रीनिवास ने भी उनका साथ देने का फैसला कर लिया और अपनी नौकरी छोड़ दी।


कौशल से पाई बीएसई मेंबरशिप

शुरुआती कदम उठाते हुए तीनों ने BSE की मेंबरशिप लेने के लिए आवेदन कर दिया। इसी बीच वे मुंबई आ गए और वहां उन्होंने ट्रेडिंग करने के लिए एक ब्रोकर को अपना इंफ्रास्ट्रक्चर इस्तेमाल करने के लिए तैयार कर लिया। इसके लिए उन्होंने उसे अपने लाभ का कुछ हिस्सा देने का वादा भी किया। इसी बीच बीएसई ने नए मेंबर बनाने शुरू किये और ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ने के लिए उन्होंने फ़ीस में भारी कटौती की और इसे घटाकर एक करोड़ से 10 लाख कर दिया इस से प्रेरित होकर रघु ने बीएसई के तत्कालीन चीफ बिजनेस ऑफिसर से मुलाकात की जिन्हें युवा ट्रेडर्स की तलाश थी। ऑफिसर ने देखा कि रघु के अंदर एक ब्रोकिंग फर्म शुरू करने का व्यवसायिक कौशल तो था ही तकनीक और फाइनेंस की अच्छी समझती भी थी। इसके अलावा उनके पास यूएस में ट्रेडिंग का अनुभव भी था। इन्हीं खूबियों को देखते हुए ऑफिसर को यकीन हो गया है कि यह तिकड़ी जरुर कुछ कमाल कर दिखाएगी और उन्होंने तीनों को मेंबरशिप दे दी।


आकर्षक प्लान से बनाए कस्टमर्स

ऑफिसर के भरोसे को तीनों की जोड़ी ने टूटने नहीं दिया। शुरुआत उन्होंने अपनी फर्म आरकेएसव्ही की स्थापना से की। फर्म का नाम उन्होंने अपने नाम के शुरुआती अक्षरों पर रखा। आरकेएसव्ही की स्थापना के पीछे उनका उद्देश्य खुद के लिए ट्रेडिंग करना था। जिसे दूसरे शब्दों में प्रोप्राइटरी ट्रेडिंग कहा जाता है। शुरुआत के तीन ही दिनों में उन्होंने 24 करोड रुपए का मुनाफा कमा लिया था। कुछ समय तक यही काम करने के बाद 2011 में उन तीनों फाउंडर्स को महसूस हुआ कि रिटेल ब्रोकिंग में उतरने का यही सही समय है। उन्होंने इसकी शुरुआत कर दी और उसके लिए फ्लैट मंथली फीस क् यूएस मॉडल को अपनाया। इस प्लान से आकर्षित होकर बड़ी संख्या में ट्रेडर्स आरकेएसव्ही को ज्वाइन करने लगे। अपनी शुरुआत के महज तिन ही वर्षों में आरकेएसवी के कस्टमर की सूची में 25,000 नाम जुड़ चुके हैं और 80 से ज्यादा लोगों की टीम बन चुकी है। आज यह फर्म 4000 करोड रुपए मूल्य के डेली ट्रांजैक्शन के आंकड़े को छू चुकी है।

मुश्किलों से दो दो हाथ

रघु, रवि और श्रीनिवासन के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी भारत के केवल 10% नागरिकों का इंटरनेट सेवी होना। इसके अलावा उनके सामने पेश आई दूसरी चुनोतियों में कस्टमर को ऑनलाइन ट्रेडिंग के बारे में शिक्षित करना, उनके अंदर ऑनलाइन ट्रेडिंग में भरोसे का निर्माण करना और यूजर्स को आकर्षित करने के लिए सही प्लांट तैयार करना शामिल थी। लेकिन खुद पर यकीन रखते हुए आरकेएसव्ही के फाउंडर ने इन सभी चुनौतियों का सामना मजबूती के साथ किया। फाउंडर्स ने खुद से सवाल किया कि वर्तमान हालात भले ही उन के पक्ष में ना हो लेकिन क्या आने वाले 10 वर्ष बाद भी स्थिति ऐसी ही होगी? उन्हें जवाब नकारात्मक मिला और उन्होंने इसी दिशा में काम करना शुरू कर दिया।

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