ऑफिस कैफेटेरिया में मिला बिजनेस आइडिया

ऑफिस कैफेटेरिया में मिला बिजनेस आइडिया

खुद की परेशानी को दोस्तों की परेशानी के साथ जोड़ते हुए दीपिंदर गोयल ने मुश्किलों का हल निकालकर सहकर्मियों के लिए मेन्यू पोस्ट करते करते खुद की बिज़नेस खड़ी कर ली और मेहनत के बल पर पहला ऑनलाइन फूड पोर्टल बनाया और बन गए जोमाटो कंपनी के फाउंडर। 








कंपनी : जोमैटो (zomato.com)
संस्थापक : दीपेंद्र गोयल (Deepinder Goyal)
औचित्य : पहला ऑनलाइन फूड पोर्टल बनाया जो दुनिया भर के लोगों के लिए रेस्टोरेंट्स की खोज को आसान बना रहा है।

आईआईटी दिल्ली से एमटेक के बाद दीपेंद्र ने कंसल्टिंग फर्म बेन एंड कंपनी (Bain and Company) में बतौर कंसल्टेंट नौकरी ली। नौकरी के दौरान उन्होंने देखा कि ऑफिस लंच के दौरान उनके सहकर्मी कारपेट एरिया में मैन्यू देखने के लिए लंबी कतार में अपनी बारी का इंतजार करते थे। जिसमें उनका काफी वक्त बर्बाद होता था। इंजीनियर होने के नाते जीवन को आसान बनाने के लिए टेक्नोलॉजी के उपयोग की हिमायत करने वाले दीपेंद्र ने साथियों का समय बचाने के लिए मेन्यू स्कैन करके उन्हें ऑनलाइन उपलब्ध करवा दिया। देखते ही देखते इस पोस्ट को कई हिट्स मिलने लगे। यहीं से दीपेंद्र को बिजनेस आइडिया आया और उन्होंने ऐसी वेबसाइट व मोबाइल ऐप बनाने का फैसला किया, जहां लोगों को अपने शहर के बेहतरीन रेस्टोरेंट से संबंधित जानकारी आसानी से उपलब्ध हो सके। नौकरी के साथ अपना बिजनेस दीपेंद्र के इस आईडिया को उनके सहकर्मी पंकज चड्ढा ने सराहा और उनका साथ देने का फैसला किया। 2008 में नौकरी के दौरान ही दीपेंद्र ने पंकज के साथ ऑनलाइन फूड पोर्टल फूडिबे डॉट कॉम (foodebay.com) की शुरुआत की इस पोर्टल का उद्देश्य था यूजर्स के लिए लोकेशन, कीमत और लोकप्रियता के आधार पर रेस्टोरेंट्स की खोज को आसान बनाना। साल भर में फूडिबे को यूजर से अच्छा फीडबैक मिलने लगा तो दीपेंद्र ने जॉब छोड़ कर पूरा ध्यान बिजनेस पर देना तय किया। 2010 के आख़िर में दीपेंद्र ने फूडिबे का नाम बदलने का फैसला लिया। इसकी 2 वजहें थी। पहली ये की वे एक ऐसा नाम चाहते थे जो खाने की चीज से मिलता-जुलता, छोटा और याद रखने में आसान हो। दूसरी यह कि वे ईबे (ebay) के साथ नाम में कोई असमंजस नहीं चाहते थे। जोमाटो (zomato.com) इस कसौटी पर खरा उतरा और फूडिबे, जोमाटो में बदल गया।

चुनौतियां मिली तो खुशियां भी

'आंत्रप्रेन्योर के तौर पर आप को सख्त फैसले लेने होते हैं। पहला कड़ा फैसला था, सुरक्षित जॉब छोड़ना।' दीपेंद्र कहते हैं 'पहले राउंड के फंड जुटाना और उपयुक्त कर्मचारियों की तलाश आसान नहीं थी। हमने इवेंट सेक्सन भी शुरू किया, जिसे कुछ ही वक्त बाद बंद करना पड़ा। सितंबर, 2012 में पहला इंटरनेशनल ऑपरेशन लांच करते वक्त हमारी मौजूदगी हिंदुस्तान के 12 शहरों में थी। कभी सोचा नहीं था कि इतने कम वक्त में हम 19 देशों के 155 शहरों में फ़ैल जाएंगे।'

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