रेंटल फर्नीचर स्टार्ट अप बदला करोड़ों के बिजनेस में

रेंटल फर्नीचर स्टार्टअप बदला करोड़ों के बिजनेस में


यूएस में गोल्डमैन साक्श में काम करते हुए अजित करीमपना को कंपनी के ऑपरेशन संभालने के लिए भारत आने का मौका मिला। इस सिलसिले में बेंगलुरु आने के बाद अजीत को महसूस हुआ कि यहां किराए पर फर्नीचर की सुविधा का आभाव है। इसी कमी में अजीत को आंत्रप्रेन्योर का आईडिया मिला। जिसे एक कामयाब बिज़नेस में तब्दील करने के लिए उन्होंने अपना ऊंचा और मोटी तनख्वाह वाला ओहदा छोड़ने का जोखिम उठाया।

कंपनी : फरलेंको, किराया फर्निशिंग सलूशन प्राइवेट लिमिटेड
संस्थापक : अजीत मोहन करीमपना
औचित्य : फरलेंको बेंगलुरु बेस्ड स्टार्टअप है जहां मासिक रेंट पर जरूरत का फरनीचर उपलब्ध करवाया जाता है।

फिलाडेल्फिया की टेंपल यूनिवर्सिटी से मास्टर डिग्री लेने के बाद अजीत करीमपना अपने प्रोफेशन में कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ते हुए यूएस के गोल्डमैन साक्स में उच्च पद पर आसीन हो चुके थे। इसी दरमियान उन्हें बेंगलुरु में कंपनी के ऑपरेशन का काम देखने के लिए वाइस प्रेसीडेंट पद की जिम्मेदारी सौंपी गई। इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए अजीत ने हिंदुस्तान शिफ्ट होने का फैसला कर लिया। शिफ्टिंग के अपने तजुर्बे के बारे में बताते हुए अजीत कहते हैं कि हिंदुस्तान के लिए उड़ान भरने के 4 दिन पहले मुझे अपना $5000 मूल्य का फरनीचर महज $300 में बेचना पड़ा, जो मैंने अपना घर सजाने के लिए खरीदा था। शिपिंग की ऊंची लागत को देखते हुए मैंने यह फैसला लिया था और सोचा कि भारत में रेंट पर फर्नीचर ले लूंगा। भारत आने पर मालूम हुआ कि रेंट पर फरनीचर उपलब्ध नहीं था। तब मैंने इसे खरीदने का फैसला किया और करीब एक लाख रुपए की कीमत का फर्नीचर ऑर्डर भी कर दिया। दुर्भाग्यवश जिस व्यक्ति को आर्डर दिया था उसका एक्सीडेंट हो गया और इस ग्रुप के दूसरे व्यक्तियों को इस लेन-देन की जानकारी ना होने के कारण उन्होंने फर्नीचर देने से इंकार कर दिया। काफी जद्दोजहद के बाद मैंने तकरीबन 45 दिन बाद अपना फर्नीचर घर ला पाया। अजीत बताते हैं कि यह अनुभव काफी बुरा था और उन्हें वैसा फर्नीचर भी नहीं मिला जैसा भी चाहते थे। यहीं से उनके दिमाग में अच्छी क्वालिटी का फर्नीचर रेंट पर देने का विचार आया।

तजुर्बा ना होने पर भी उठाया जोखिम

रेंट पर फ़र्नीचर देने की प्रक्रिया का कोई तजुर्बा ना होने के बावजूद भी अजीत ने अपने इस idea को बिजनेस में तब्दील करने का फैसला कर लिया। अजीत का कहना है कि मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि मेरा आइडिया कारगर साबित होगा। मुझे यह समझ आ चुका था कि फर्नीचर रेंटल मार्केट में गैप है और यहां जगह बनाई जा सकती है। इसी सोच के साथ मैंने लॉजिस्टिक्स पर काम करना शुरु किया और अपने आईडिया को बिजनेस का रूप देने का रास्ता तलाश करने लगा।

फर्नीचर रेंटल कंपनी की रखी नींव

अक्टूबर, 2011 में अजीत ने अपने माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध जाकर अपनी मोटी तनख्वाह वाली जॉब से इस्तीफा दे दिया और अपने बेंच को स्थापित करने पर पूरा ध्यान केंद्रित किया। कुछ ही वक्त बाद अजीत ने 30 लाख रुपए के शुरुआती निवेश के साथ रेंट योर दुनिया (अब फरलेंको) के नाम से इस बिजनेस वेंचर की नीव रखी। इसके पीछे अवधारणा थी - घर को संपूर्ण बनाने के लिए जरूरी फर्नीचर (सोफा सेट, सेंटर टेबल, 4 कुर्सियों वाली डाइनिंग टेबल, एक वॉशिंग मशीन, दो बेड, एक रेफ्रिजरेटर और एक टेलीविजन) को मासिक किराए पर चार से 5 दिन में उपलब्ध करवाना।

विस्तार की योजना

बाहर से आने वाले लोगों की जरूरतों के मद्देनजर अजीत ने प्रयोग के तौर पर फरलेंको की नीव रखी और उसे कुछ ही वक्त में स्थानीय लोगों को भी उपलब्ध करवाने लगे। आज फरलेंको के टर्नओवर का 90% हिस्सा इसी सेगमेंट से आता है। अजीत के अनुसार 3 वर्ष पुरानी इस कंपनी का लक्ष्य आने वाले 5 सालों में देश के 7 शहरों में अपनी सेवाएं पहुंचाना और सात करोड़ रुपए का मासिक टर्नओवर हासिल करना है।

इंटरनेट विज्ञापन से मिला बड़ा ब्रेक

अजीत की पत्नी की मित्र से फरलेंको को पहला आर्डर मिला। दरअसल वह मुंबई से बेंगलुरु शिफ्ट हुई थी और उन्हें फर्नीचर की आवश्यकता थी। इसी के चलते उन्होंने अजीत को उनके घर का फर्नीचर बनाने का ऑर्डर दिया। अजीत बताते हैं कि वे चाहते तो आसानी से फर्नीचर खरीद सकते थे लेकिन उन्होंने मेरी मदद करने की सोची और जरूरत का सामान रेंट पर लिया। अजीत के बिजनेस को बडा विस्तार तब मिला जब उन्होंने इंटरनेट पर फरलेंको का विज्ञापन देना शुरु किया। इसके बाद फ्रांस के नागरिक ने उनसे एक बड़ा कंसाइनमेंट रेंट पर लिया। इस वक्त तक अजीत बिना किसी स्टोर के कारोबार का संचालन कर रहे थे।

बदला लोगों का नजरिया

अजीत इस बात से वाकिफ थे कि भारत में फर्नीचर रेंटल पहली बार संगठित रूप में लाया जा रहा था। यही वजह थी कि अजीत के सामने कई तरह की चुनौतियां थी। इनमें पहली थी रेंटेड फर्नीचर के प्रति लोगों का नजरिया। उन्हें ऐसा लगता था कि यह फर्नीचर यूज्ड होगा इसलिए इसे लेने के लिए कम ही लोग तैयार थे। इस मसले को हल करने के लिए अजीत को यह आश्वासन देना होता था कि अगर आपको शोरूम जैसी क्वालिटी का फर्नीचर ना मिले तो वह इसे लौटा सकते हैं। साथ ही अजीत ने एक ऐसा मॉडल और मूल्य निर्धारित करने की योजना बनाई जो 25 से 35 वर्ष की उम्र के ग्राहकों को आकर्षित कर सकें। यह कारगर साबित हुआ। अजीत शुरुआती दौर को याद करते हुए कहते हैं कि 'वर्ष 2012 के दौरान मैंने काफी कुछ सीखा। हमारी कोशिश थी कि हम न सिर्फ बाहर से आने वालों के बीच बल्कि नवविवाहितों और अविवाहितों के बीच अपने कॉन्सेप्ट को कामयाब बना सकें।

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