मोबाइल हैकाथॉन में मिला डिलीवरी स्टार्टअप का आईडिया

मोबाइल हैकाथॉन में मिला डिलीवरी स्टार्टअप का आईडिया

फ्लिपकार्ट में नौकरी के दौरान दिखी समस्या ने मोहित और अर्पित को स्टार्टअप शुरू करने के लिए प्रेरित किया। शुरुआत के एक ही साल में दोनों ने अपनी मेहनत के बल पर कंपनी को सफलता के ऐसे मुकाम पर पहुंचाया, जहां पहुंचने की इच्छा सभी आंत्रप्रेन्योर रखते हैं। 





कंपनी : रोडरनर बदला हुआ नाम runnr
संस्थापक : मोहित कुमार, अर्पित दवे
औचित्य : लॉजिस्टिक्स की समस्या को हल करने के लिए बनाई हाइपरलोकल ऑन डिमांड डिलीवरी सर्विस। 

मोहित और अर्पित की मुलाकात फ्लिपकार्ट में नौकरी करते हुए हुई। मोहित ने 2010 में बेंगलुरु के पीईएस इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से कंप्यूटर साइंस में ग्रेजुएशन की थी। इसके बाद कुछ समय उन्होंने हॉलिडे आईक्यू और ओलाकैब्स में काम का अनुभव लिया। अब वे सीनियर प्रोडक्ट मैनेजर के तौर पर फ्लिपकार्ट में काम कर रहे थे। वही अर्पित आईआईटी खड़गपुर से ग्रेजुएट थे और फ्लिपकार्ट में एनालिस्ट के पद पर काम कर रहे थे। दोनों को इस बात का अंदाजा नहीं था कि उनकी यह मुलाकात उन्हें भविष्य का रास्ता दिखाएगी और आगे चलकर बिजनेस पार्टनर्स बन जाएंगे। दरअसल इसकी शुरुआत फ्लिपकार्ट में दिसंबर, 2014 में आयोजित एक मोबाइल हैकाथान में हुई जहां उन दोनों को एक ही टीम का हिस्सा बन कर साथ काम करने का मौका मिला। दोस्ती बढ़ने के साथ बातों ही बातों में उन्हें महसूस हुआ कि देश में ई-कॉमर्स कई गुना तेजी से बढ़ रहा है। न केवल स्थापित कंपनियां तरक्की की ओर अग्रसर हैं, बल्कि नए स्टार्टअप भी खूब फल-फूल रहे हैं, लेकिन इसके साथ ही इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि इस ग्रुप को सपोर्ट करने के लिए जरूरी लॉजिस्टिक्स मौजूद नहीं था, जो इस बिजनेस के लिए एक बड़ी खामी साबित हो रहा था। ऐसे में दोनों दोस्त अब इस बात पर विचार करने लगे कि आखिर कंपनी के लिए लॉजिस्टिक्स मँहगा सौदा क्यों साबित हो रहा है। 

बिजनेस के लिए नौकरी से इस्तीफा
इसी सोच विचार के बीच उन्होंने पाया कि ओला और उबर जैसी कंपनियों के आने से पहले ट्रांसपोर्टेशन भी महंगी सुविधाओं में शामिल था, लेकिन इनके आने के बाद बिचौलियों की समाप्ति के साथ यह समस्या हल हो गई। इसी के मद्देनजर उन्हें समझ आ गया कि लॉजिस्टिक्स की समस्या को हल करने के लिए भी ऐसा ही मॉडल कारगर साबित होगा। मार्केट की गहरी खोजबीन करने के बाद दोनों ने देखा कि इंटरसिटी मॉडल के लिए मार्केट में मौजूद ज्यादातर बिजनेस इंटरसिटी लॉजिस्टिक्स प्रक्रिया का इस्तेमाल कर रहे हैं, जो कि उनके अनुसार पुराना हो चुका था। काफी सोचने समझने के बाद समस्या का समाधान मिला तो मोहित और अर्पित को इसमें बिजनेस की मजबूत संभावनाएं नजर आने लगी। इसे गंभीरता से लेते हुए दोनों ने खुद की कंपनी शुरू करने का फैसला किया और फ्लिपकार्ट की नौकरी से इस्तीफा दे दिया। आगे नए लक्ष्य की तैयारी में जुट गए। 

घर पर दी डिलीवरी वॉइस को ट्रेनिंग
कुछ महीनों तक गंभीरता से सोच विचार, बाजार का विश्लेषण और अन्य जरूरी तैयारी के बाद दोनों ने फरवरी, 2015 में अपनी कंपनी रोडरनर की शुरुआत की। इसी दिशा में अपना पहला कदम उठाते हुए मोहित ने अलग-अलग रेस्टोरेंट्स और स्टोर से खाना और अन्य सामान ऑर्डर करना शुरु किया। इसके पीछे मकसद यही था कि इस माध्यम से वह कुछ डिलीवरी बॉयज के साथ संपर्क कर सके और उन्हें अपनी टीम में शामिल होने के लिए राजी कर सके। टीम में शामिल होने वाले उम्मीदवारों को मोहित अपने घर पर ही ट्रेनिंग दिया करते थे और उन्हें रोकने के लिए हर हफ्ते सैलरी देते थे। लगभग 1 सप्ताह के अंदर उन्होंने अपना यूआरएल लिंक तैयार कर लिया। जिसकी मदद से क्लाइंट्स अपना पसंदीदा खाना तलाश सकते थे। इसी के साथ कुछ व्यापारियों से इसे परखने का अनुरोध भी किया। रोडरनर का पहला कस्टमर कोरामंगला स्थित एक बिरयानी जॉइंट था। इसके मालिक को व्यस्त रुटीन के बीच डिलीवरी की मुश्किलों से बचने और कर्मचारियों पर ज्यादा खर्च से बचने वाला यह आईडिया काफ़ी पसंद आया और देर ना करते हुए उन्होंने इसे अपने बिजनेस के लिए चुना। 

मुश्किल समय में खुदसे की डिलीवरी
हालांकि क्लाइंट को जोड़ने में मोहित और अर्पित की को मुश्किलें आई शुरुआत के कुछ क्लाइंट ने इस आईडिया को संशय की नजरों से भी देखा और पूछा कि वाकई ऐसी किसी सेवा का अस्तित्व हो सकता है। शुरुआती दिनों के संघर्ष को याद करते हुए मोहित बताते हैं कि पहले दो तीन महीनों में डिलीवरी का ज्यादातर काम वह खुद ही किया करते थे। इसके अलावा और भी चुनौतियां थी। वे कहते हैं, जब मैं रोडरनर की शुरुआत कर रहा था तो मेरे बैंक अकाउंट में ₹25 लाख रुपए थे। हालांकि लॉजिस्टिक्स का बिजनेस शुरू करने के लिए यह रकम पर्याप्त नहीं थी लेकिन मैंने इसके दम पर रोडरनर की स्थापना का फैसला कर लिया। इसी बीच एक वक्त ऐसा भी आया जब मेरी जेब में सिर्फ ₹120 रूपये रह गए। वही कंपनी के खाते में पहले महीने के अंत तक 800 ट्रांजैक्शन प्रतिदिन दर्ज होने लगे थे। कंपनी की इस तरक्की को देखकर इंवेस्टर्स भी आकर्षित होने लगे और इस तरह कंपनी को सिक्योइया कैपिटल, ब्लूम वेंचर्स और नेक्सस वेंचर पार्टनर्स के माध्यम से फंडिंग प्राप्त हुई। 

बड़े क्लाइंट्स के साथ 11 शहरों में मौजूदगी
कंपनी की शुरुआत में उपयुक्त कर्मचारियों की तलाश, अपनी सर्विस की आजमाइश के लिए क्लाइंट्स को राजी करने और वित्तीय सुरक्षा को बनाए रखने जैसी तमाम चुनौतियों के बावजूद, दोनों ने धैर्य रखते हुए अपना पूरा ध्यान बिजनेस के निर्माण पर दिया। इसी धैर्य का परिणाम है कि आज कंपनी के पास 6500 से ज्यादा क्लाइंट्स है, जिनमें फासोस, मैकडोनाल्ड, केऍफ़सी, मिंत्रा और स्नैपडील जैसे दिग्गज शामिल है। यही नहीं 200 कर्मचारियों के साथ कंपनी अपनी सेवाएं देश के 11 शहरों में दे रही है और 20 फिसदी की साप्ताहिक दर से बढ़ते हुए तकरीबन 40000 डिलीवरी एक दिन में पूरी कर रही है। भविष्य में कंपनी के विस्तार की योजना के बारे में बताते हुए मोहित कहते हैं कि हम इंटरसिटी डिलीवरी में उतरने के साथ 2,00,000 डिलीवरी प्रतिदिन के आंकड़े को छूने और 2016 के अंत तक देश के 16 शहरों में अपनी पहुंच बनाने की तैयारी कर रहे हैं।

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